Sunday, 19 November 2017

हालात- ए - इश्क़ ©


हालात- ए - इश्क़

एक कसक है जो ठंडी नहीं होती
कुछ उमस है जो भीनी- भीनी सुलगती
बज़्म में लोग भी शामिल है ऐसे ,
किनारे मिलते नहीं नदी के ,जिन्हें आदत है कहने की ,
झोंका है हवा का वक़्त- ए -काफ़िर
दगाबाज़ दरियाँ जो डूबकर उभरने नहीं देती
अमावस जैसी रात बीच -बीच में ,
हर पहर आती है
इश्क़ उस बेवा से हालात है जो
ख़ुद मर कर भी सवरने नहीं देती
शायरी कविता गीत ग़ज़ल ,
सब मेरे किस्से ही तो हैं
लोगों से दाद जो मिलती है मुझे ,
मेरी आह उसे मुझ तक पहुँचने नहीं देती!!

©प्रज्ञा ठाकुर

Wednesday, 18 October 2017

मैं स्याह रातें ,तुम गगन के चाँद मेरे ,©

अनगिनत बार यूँ ही लौटी
ख़ाली हाथ देख बस गगन की ओर ,
तुम बहुत दूर थे
और चमक रहे थे ,
मैं अमावस की रात
तुमको ग्रहण से दूर रखके
लौट आयी इस कदर
वापस उस जगह से ,
जहाँ बस ख़ाब में जाती हूँ,
 मिलने तुमसे अक्सर !
ज़िंदगी है यूँ तो मेरी स्याह रातें
और तुम हो ,निल-गगन के चाँद मेरे
कई बार कोशिश भी की
तुम तक पहुंच पाने की
पर मेरी किस्मत में,
 तुम शामिल नहीं हो
हार जाती हूँ मैं अक्सर
सोचकर ये ,
दूर हो तुम दूर !
बहुत ही दूर हमसे ,
और ये दुरी धरा से ,
गगन तलक की ही नहीं ,
ये दुरी है इस दिल से ,
उस दिल के दरमियाँ भी ,
ज़िंदगी है यूँ तो मेरी ,स्याह रातें
और तुम हो ,निल -गगन के चाँद मेरे !

©प्रज्ञा ठाकुर

Wednesday, 11 October 2017

माल लग रही

अल्का बहुत ख़ूबसूरत है ,और उसे इस बात का कोई घमंड नहीं , क्यूंकि ख़ूबसूरत है तो, लोग बचपन से ही उसको कहते है ' तुझे बहुत अच्छा लड़का मिलेगा' , जल्दी शादी करले , तेरा पति कितना लकी होगा , अरे यार तुझे तो कोई टेंशन नहीं लाइफ में तू इतनी सूंदर है ! तुझे तो दहेज़ भी नहीं देना पड़ेगा , तुझे तो कोई भी मिल जायेगा, कोई लड़का मिला की नहीं ? तेरा तो १००% बॉय फ्रेंड होगा तू इतनी सूंदर जो है , बाहर तो बाहर घर में भी , इसके लिए कोई अच्छा लड़का देख के जल्दी शादी कर दो  , अब ऐसी खूबसूरती पर बेचारी इतराये भी कैसे ? जिसके लिए उसको गिफ्ट शादी और लड़के ही मिलते है ! और बाकि चीज़ो के कोई मायने नहीं रहते ! तू सूंदर है तो तुझे अच्छा लड़का मिलेगा , जैसे शादी के लिए ऊपर से सर्टिफिकेट लायी हो, आज तो हद हो गयी , एक नयी जगह गयी दोस्तों के साथ घूमने , और पहली बार सलवार -सूट पहना , ३लङकी और २ लड़के के ग्रुप में , एक लड़का अचानक बोल पड़ा 'माल लग रही ,क्या बात है ? पहले तो वो कुछ समझ नई पायी क्या बोलू इतने घटिया तारीफ के लिए जो गाली की तरह जा के कान से टकरा गए ! तभी दूसरा बोल पड़ा , हॉट लग रही एकदम ! हलकी सी मुस्कराहट और दबी हुए खामोश गुस्से के साथ वो बोली एक्सक्यूज़ me  ' और किसी को ph  मिलाया , सारा गुस्सा उस ph  वाले  सख्श पे उतरा और घर आयी ,
कॉल बैक आया , अच्छा सुन ' गुस्से से कुछ नहीं होगा तू उसे जबाब दे बोल की तुझे अच्छा नहीं लगता , उसे बोल की माल (तुम पीते हो , माल तुम पैसो को बोलते हो , और उन् कीमती चीज़ो को जो  तुम्हे इस तरह से बिगड़ैल बनाती है , मैं एक लड़की हूँ माल या पौवा नहीं , मुझे समझ नहीं आ रहा देश में लोग लड़कियों को objectify  करना कब बंद करेंगे , अब तूने पहले कुछ उसे कहा नहीं अब कबसे मुझे समझा रही -उसकी दोस्त प्रीति उसे बोलती है )
अचानक से डोर बैल बजी और वही श्रीमान आ खड़े हुए ! बहुत तैयार हो कर आये थे तभी अल्का बोल पड़ी "wao यार तू तो एक दम कौड़ी लग रहा . एक दम झक्कास ! लड़का शॉकड होकर पूछा क्या ? ये क्या होता है ? वो हंस कर बोली अरे कौड़ी नहीं पता ? दो कौड़ी का, एक दम दो कौड़ी का लग रहा ! लड़का फिर गुस्से में बोला क्या बोल रही अच्छा नहीं लग रहा क्या मैं ? ऐसे क्यों बोल रही जैसे गाली हो ? लड़की हसीं और बोली क्या यार तू भी बुरा क्यों मान रहा इतना , जैसे माल मीन्स मैं , वैसे ही कौड़ी , और टाका मीन्स तू , इसका मतलब गाली नहीं हुआ , कौड़ी और टाका भी पैसे को ही बोलते है , पता नहीं तुझे अच्छा क्यों नहीं लग रहा ,
अच्छा तूने ये माल सीखा कहा से / क्या तेरे दादू ,दादी को माल कहते थे , या तेरे पापा को तेरी माँ माल लगती है , मतलब i थिंक की तेरी दादी और तेरी माँ दोनों ही बहुत ख़ूबसूरत महिला है फिर भी उनको तू माल नहीं कहता ऐसा क्यों ? अगर ये इतना ही अच्छा है .
लड़के ने गुस्से में बोला तुझे बुरा लगा इसका मतलब ये नहीं की तू मेरे माँ के बारे में बोलेगी .
अल्का मुस्कुरायी ' मुझे नहीं तुझे बुरी लगी की तेरे माँ को मैंने माल कहा , अगर तुझे इतनी ही बुरी लगी तो दोबारा किसी को मत कहना की तू इतनी सूंदर एकदम माल लग रही !

Friday, 6 October 2017

9o's lovers bad times

Summer of late 90's , i was too young to understand love but .. One day i saw some one too down to earth came to the house , he was in love with my elder sister & that was the bad era , when all love story goes like wind after so many people do not have guts to tell or confess parents , there are many who can tell but answer will be a big no ,& those bad times of love when i saw a sweet guy came to my parents , holding mom's hand & asking can you give me permission to take care of your daughter for life time , Imagine how beautiful situation , i would not mind to allow my son or daughter doing that ,But in late 90's it was a ugly night mare , never happens kind of story .. My elder sister's love was imagination , that boy came like a friend , & he went .. as a memory ,i cried because love was in every eyes at those times , all around people having affairs but there was not a single love story i seen to be a real one , That was the time,when i started reading novels because people were writing love stories their beautifully , & that was my age to believe in fairy tale .Sadly but how would be the world if all love story got completed & every writer used to write the feelings with their loved one's , i won't mind the world to be full of fairy tales .

लहरों से मोहब्बत!©

मैं समुन्दर का एक किनारा हूँ
और मुझे दूसरे किनारे से मोहब्बत है
जानती हूँ, हम दो किनारे है
कभी मिले नहीं , न कभी मिल भी पाएंगे
पर मुझे तुझसे जुदा होने का गम है
ये कैसा साथ है? लोग सोचते होंगे
मैं दीवानी हूँ जानती हूँ, लोग पागल भी समझते होंगे !
लेकिन मुझे उस रोज़ तुमसे मोहब्बत हुई ,
'ए किनारे' जिस दिन
तुम्हे छू कर आयी एक लहर ने मुझे छुआ
मैं हैरान सी थी कुछ ऐसा उस रोज़ महसूस हुआ
कुछ अपना सा, प्यारा सा ,अजब सा, गजब सा ,
फिर मेरे अंदर के जस्बातों का
एक लहर तुझतक पंहुचा
और तुझे भी झंकझोर गया 'भीतर तक'
ऐसे ही लहरों से हमारा प्रेम आगे बढ़ा
हर कहानी तेरी-मेरी हर आपबीती हम दोनो को पता है !
और हमारी चिठियाँ ले जाती ये लहरें ,
इनसे भी तो कुछ न छिपा है !
मुझे तेरे पास नहीं आना ,
मुझे तुझसे दूर नहीं जाना ,
बस मुझे इतनी सी मोहब्बत है तो इसी से ,
जो ये ख़ूबसूरत सा सिलसिला है
मैं ये चाहूंगी की ये खत्म न होने पाए
ये कुछ जो मीठा दर्द है खोने न पाए
और कभी ये लहरें हमारा पैगाम
लाना-लेजाना अगर जो भूले
अये किनारे तुझे कसम है की तू और मैं
इसी समंदर में ऐसे घुले की इसी का हिस्सा रह जाये
हमारी दास्ताँ ऐसे दफ़न हो की,
मोहब्बत का कोई हसीं किस्सा बन जाये !


©प्रज्ञा ठाकुर

Thursday, 7 September 2017

मन वाबला !©

मन बावला उड़ता फिरे
कभी दिल जिधर ,कभी दर -बदर
कभी किसी पुराने मोड़ पर
कभी इस शहर, कभी उस शहर
जाने कैसा है ये हमसफ़र
कभी किसी पुरानी याद में
खोया-खोया सा रहे ,
कभी किसी पुरानी बात में
उलझा उलझा सा फिरे
कभी आने वाले पल की
फ़िक्र में , मायूस सा
ज़िंदगी की पहेलियों में
जकड़ा हुआ भटका सा
एक मैं मुसाफिर हूँ -
एक है मुसाफिर मन मेरा !
मन वाबला , मन बावला!!!



©प्रज्ञा ठाकुर

दीवाने बाबू की दीवानी नीलू !©

हर रोज़ की तरह आज भी साम्नाये दिन था , बस एक फर्क था मेरा आज एग्जाम था कॉलेज में , रोज़ की तरह अपने पड़ोसी मेहता अंकल का लड़का मुझे बाइक से ड्राप कर देता था , कॉलेज में वो मेरा सीनियर था , हाँ २ साल से साथ जा रहे है ,सो थोड़ी सी दोस्ती आगे बढ़ी है , कभी-कभी इशारो में एक दूसरे से गुफ्तगू हो जाती है , या कभी एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा देते है , रास्ते में बाइक पर तो कॉलेज सम्बन्धी दुनिया भर की बातें होती है , ,खूब ठहाके लगते है कभी- कभी किसी उटपटांग सी दूसरों की बातों पर .
चुप -चाप कॉलेज परिसर में दाखिल होते ही, दो अजनबियों की तरह अपने- अपने क्लास में चले जाते है ,ताकि लोग तरह-तरह की बातें न फैलाये , और हमारी जिंदगी में ताका झांकी न करें, बस इतना ही गहरा और समझदार रिश्ता है हम दोनों का , कभी- कभी लौटते वक़्त रास्ते में रुक के मंदिर चले जाते है या आइस-क्रीम खा लेते है , आइस-क्रीम वाला काका , हमे अफसर बिटिया ,और इनको दीवाने अफसर बाबू कहते है ,
क्यों ? क्यूंकि हम जो भी बातें करते है वह खड़े होकर चुप -चाप सुनता है , इसने कुछ दिन पहले की हमारी बातें सुन ली थी - अलोक(दीवाने बाबू )- मैं सोच रहा हूँ IAS के लिए prepare करू फाइनल ईयर है , तुम भी कहीं अच्छा सा कोचिंग देख लो , अभी से तैयारी करोगी तो आसानी से हो जायेगा पहले ही एटेम्पट में ,
नीलू- हाँ मैं भी यही सोच रही थी , मेरे पापा का सपना है ! फिर शायद पापा हमारी शादी के लिए भी मान जाये ,जब बेटी दामाद दोनों लाल बत्ती की गाड़ी से उतरेंगे ...
अलोक -हाँ तब तो हमारे मोहल्ले वालो की भी जुबान बंद होगी ,
आइस-क्रीम वाला बोल पड़ा , मुस्कुराते हुए - बिटीया भगवान आप दोनों को सफलताएं दें, तब आप दोनों इस गरीब काका को मत भूल जाना !
अलोक - अरे काका यार !आप कैसी बात कर रहे , तब तो हम आपके दुकान पर खड़े होकर आइस-क्रीम जरूर खाएंगे ! बस इतनी सी बात हुई थी और तबसे मैं अफसर बिटीया हूँ , और अलोक दीवाने अफसर बाबू ,मेरे कारन !!
अलोक -सुनो आज पेपर जल्दी ख़त्म होगा तो २ बजे मूवी देखने चलोगी ? ना नहीं सुनेंगे देख लो फिर हम बहुत बिजी होने वाले , फिर ना ले जा पाएंगे !
नीलू - अच्छा बाबा ठीक है , कौन सी लगी है ?
अलोक- the dark knight rises ...
मूवी देखि और बाहर निकल कर आइस-क्रीम वाले के पास गए !
अलोक- काका दो आइस-क्रीम , मैडम के लिए बटरस्कॉच और मेरे लिए तो काका अपनी मटका कुल्फी !
नीलू- ओह नो ! चलो यहाँ से मेरे पड़ोस वाले श्याम अंकल ने देख लिया , हमे निकलना चाहिए
अलोक-अरे हद बात करती हो.देख लिया तो कौन सा कोई गलत काम कर रहे आइस-क्रीम ही तो खा रहे ! इन् पड़ोसियों की भी , हमसे मिलवा देना कोई बात हो तो , और टेंशन मत लो इतना ,इनके लड़के को देखे थे , गांजा फूकते हुई अपने DC के आगे !
नीलू- प्लीज घर चलो , ना जाने क्या बोल दे वो घर पे
घर आयी घबराई सी मैं , पापा ने बस इतना कहा आज से तुम्हारा कॉलेज जाना बंद , लड़का देख रहे तुम्हारी शादी करनी है ,
बस फिर क्या था ? मेरे सपने टूटने ही वाले थे , दीवाने बाबू और मेरी दोस्ती ,रिश्तेदारी में बदलने के ही नहीं बल्कि IAS बनकर पापा के सामने आने के भी सपने , कई सारे सपने
३ साल बाद ,
हम दोनों आज फिर से साथ बैठे है एक साथ , आइस-क्रीम वाले भैया के पास , एक दूसरे के हाथो में हाथ लिए , बस एक ही फर्क है . आइस-क्रीम खाने को नहीं मिलेंगे , तुम कुछ कहते नहीं आजकल ,चुप ही रहते हो , खाते भी नहीं , किसी से बात नहीं करते बस यहाँ आकर घंटो बैठे रहते हो मेरी यादों में , उन्ही लम्हो में कैद होकर आखिरी लम्हा मेरे साथ बिताया हुआ , जिंदगी तुम्हारी डार्क neight सी हो गयी है !
मुझे मालूम था की फिर ये लम्हा नसीब ना होगा !
अंकल ने माँ को कहा था , आपकी बेटी बदचलन है पड़ोसी के साथ सिनेमा हॉल के बाहर रोमांस फरमा रही, मुझे बहुत अफ़सोस है भाईसाब, आपने कैसे संस्कार दिए , माँ -पापा के खून में उबाल था , मुझे सजा मिली उम्र कैद (शादी की) और मैंने सबसे दूर अपनी बेहतरी के लिए जाना समझा , बस ज़रा सा जहर था जिसने मुझे तुमसे दूर करके पास कर दिया , जानती हूँ तुम तब से खामोश हो दुनिया के लिए ,लेकिन मुझसे तो रोज़ बातें होती है तुम्हारी ....
फिर मिलेंगे नयी दुनिया में , इंतज़ार करना ,' मोहब्बत कभी अधूरी नहीं होती' बस नज़र का फ़र्क है
तुम्हारी दीवानी नीलू

©प्रज्ञा ठाकुर

आज़ाद हूँ! ©

आज़ाद हो तुम ,मैं भी आज़ाद हूँ
ये सुना राजपथ आज़ाद ही तो है
अमर जवान पे सालो से जल रही
ये तम की लौ आज़ाद ही तो है
रोज़ रोज़ मरते "शहीद " आज़ाद ही तो है
रोज़ रोज़ के कत्ले -आम आज़ादी ही तो है
आज़ाद है ये महल(राष्ट्पति भवन ) आज़ाद हिन्द का
आज़ादी ही तो मिली है अंग्रेज़ों से इन्हे .
तिरंगा आज़ाद है ,नेता आज़ाद है ,जनता आज़ाद है
आज़ादी की पराकाष्ठा है सदियों से ,
चंद ब्यापारियों को ,नेताओ को छोड़ दें तो ,
दो मुट्ठी फसल पे जीते किसान आज़ाद है
बेरोज़गारी की मार सहते युवा आज़ाद है
बीमारियों की चपेट में मरते जन आज़ाद है
सीमा पर सीने पर गोली खाते जवान आज़ाद है
कड़ोड़ो का घपला करते नेता जी आज़ाद है
इज़्ज़त गवा कर सड़क किनारे पड़ी अबला आज़ाद है
राम-कृष्ण के देश में ,बस बाबा आज़ाद है
बहुत पैसा है देश में , बहुत सुरक्षित है , रोज़गार है
और बोल बच्चन वाली हर एक सत्ता आज़ाद है :-)


©प्रज्ञा ठाकुर

'इश्क़' ©

सुकूं नहीं है जिसमे, 
फिर भी करते है
जुनूं होता है ऐसा की, 
लोग मर गुजरते है
कोई काम नहीं होता
कोई दाम नहीं होता
लोग कहते है ऐसा
इसका कोई इनाम नहीं होता!
बस जीने को करते है
लेकिन मर-मर के करते है
हाँ इसे 'इश्क़' कहते है !

©प्रज्ञा ठाकुर

Tuesday, 22 August 2017

कागज की पहली नाओ ©




कागज  की  पहली  नाओ बनाना  मुझको
मेरी  नानी  ने  सिखलाया!
अपने  नाम  का  मतलब  मुझको ,
नानू ने  बतलाया!
कहती  है  माँ  मेरे  जिद्दी  होने  की,
वजह  है  उन  दोनों  का मेरी,  जिद्द  पूरी  करना!
नानू  के  प्यार  दुलार  ने  मुझको,
उड़ना  आज़ाद  सिखाया .
 नानी  के  संस्कार  ने  मुझको
ईश्वर  का  अर्थ  बताया .
गणित  के  पहले  प्रश्न   हल  करना
नानू  ने  था  सिखाया .
तो  बाल बनाना  ,चोटी करना
नानी  ने  सिखलाया!
मेरी  हर  ख्वाहिश  का  ख्याल
उन  दोनों  को  था  रहता .
भूल गयी मैं , अपनी  ही  बातें
मगर  उन्हें  याद  सब  रहता
जाने  कितने  साल  पहले  मैंने ,
नानी  से  मांगी  थी  इक  पाजेब
अब  पाजेब  का  सौख  नहीं
कह  कर ,मैं भी थी  भूल  गयी ...
लेकिन  नानी   को  याद  रहा
लाकर  दी थी कुछ  साल  पहले
कर  दिया  मुझे  हैरान ... :-)
नानू  कहते  है  जब  नेह  मिलती  है
ऐसा  लगता  है  चिड़िया  बैठी
शाख़  पर आ,
बैठ  पास  मेरे  तबतक , 
बातें  करती  है
मैं  खुद  ना  कह दूँ ,
खुद  से - बेटा अब  सो  जा!
नानी  की  तो  इतनी  सारी यादें  है.
नम हो  जाती  आंखे  अक्सर  सोच  उन्हें ,
छोटी  मासी और  मेरे  बीच  उन्हें अधिक कौन  प्रिये ?
इस  सवाल  का  जवाब  आज  भी मेरे हिस्से
दादी  से  नहीं  कहानी  मैंने  ,
नानी  से  सुने  है .
मेरे  पहले  शिक्षक ,
मेरे  नानू  ही बने  थे!
पेड़े,लडडू ,गुलाबजामुन  ,
घर  के  पसंद  है .
क्यूंकि अक्सर  नानी  के हीं,
हाथो  के  बने  मिले  है!
चंदा  मामा की  लोड़ी
नानी  से  सुनी  थी .
क्या  कहूँ ? की, सारा बचपन उन्हीं के साथ था बीता!
इतने  करीब  से क्या किसी ने  कोई  प्यार  है  देखा?
इतने  किस्सों  का  सच्चा कोई  संसार  है  देखा!©
LOVING MEMORY OF THEM..

Monday, 14 August 2017

ख़ामोशी



 दरकती  हुई सांसे  ख़ामोशी  से  कह  रही-
वो  एक  उम्र  भी  कम  था  तेरी  साथ  को  ,
औ आज  जब  हम  मौन  में  , तुझे  कह  भी  नहीं  पा रहे
की  एक और  उम्र  जीने  की  ख्वाहिश  है  तेरे  संग .
तो तू पास में ही हाथ को थामे,सिसकिया ले रहा !
और कह रहा खुदा कुछ पल,"इसे और देदे ".
यही  एहसास  है जो आज ना कह कर भी , बहुत कुछ कह रही !
 इसी की कमी थी जो आज मैं ,कुछ  कहने सुनने  के काबिल भी नहीं .
प्रज्ञा ठाकुर

नहीं मिली आज़ादी !



जन सत्ता की तोड़ भुजाये
बहुत सुन ली कहानी
अब भी आज़ादी जैसी क्या
कोई चीज़ है ले आनी?
नहीं जो देखी है हमने
गुलामी की वो दौड़ जहाँ,
गोली बंदूके बारूदें
से छन्नी होते थे सीना !
पर आज जो हम है देख रहे
वो भी दौड़ नहीं इंसानी !
अब अंग्रेज़ो के लिए नहीं
कोई देनी क़ुरबानी
पर अब तो वो मुश्किल दौड़ है
जहां अपनों से ही है द्वन्द
पीड़ा है बड़ी अनजानी
अपने ही देश के राज़ मुकुट से
जो हिल गया उस पौरुष से
आज़ादी के बाद की चूक एक
जिससे शहीद सैनिक अनेक
और लगे हुए अब भी देने
असंख्य क़ुरबानी बन देश भक्त
ये जो बापू थे राष्ट्र पिता
उनकी ये भूल की कीमत है
जो चले गए वो छोड़ देश
आज़ादी में भी  हुकूमत है

एक ख्याल

बहुत दिनों से एक ख्याल है मन में सोचा खुद से कह दू.हाँ सही सुना अपने आप से कुछ कहना था . मैं दुसरो को सच या झूठ बड़ी या छोटी बातें आसानी से कह जाती हूँ ,बेबाक तरीके से पर खुद से कुछ बातें करने में बहुत हिम्मत जुटानी पड़ती है . खुद को कही भी गलत ठहराना हो या किसी सचाई से रूबरू जो की तकलीफ देती हो तो कैसे करवाए ,मैं अक्सर कविता कहानियों के जरिये कह बहुत कुछ देती हूँ लेकिन खुद को क्यों नहीं समझा पाती क्यूंकि शायद उसी मुकाम पर मेरा एक लेखिका होने का दायरा छोटा होता है और इंसान होने के दायरे में सिमट जाता है और फिर वो इंसान सोचता है ,की बातों से कुछ नहीं होता या फिर ऐसा तो सबके साथ होता है ना ,आज का यह पोस्ट सबके साथ होने वाली मानसिकता पर है .
मैं नहीं मानती की सबके साथ एक ही चीज़े एक ही बाते होती है . मुझे मालूम है की कुदरत भी सबके साथ अलग अलग ही बर्ताव करती है अगर लोग कुदरत को अलग अलग तरीको से चुनौती देते है.जैसे मैं दिखती हूँ वैसे आप नहीं दिखते,जैसा मैं सोचती हूँ आपकी सोच भी उससे अलग हो सकती है अगर आप दुसरो की सोच फॉलो ना करे तो ,और ऐसा ही अलग अलग हम सबके जीवन का लक्ष्ये है. अक्सर सुनती हूँ ,ये फेल हो गया तो बड़ी बात क्या है और भी हुए है, ये डॉक्टर नहीं बन सकता क्युंकि इसके घर में कोई पढ़ा लिखा नहीं ये पढ़ाई में कमजोर है तो ये खिलाडी बनेगा या सिनेमा में जायेगा . सड़क पर तमाशबीन बने लोग किसी को सहारा नहीं देते हॉस्पिटल ले जाने में सोचते है .आवाज़ नहीं उठाते क्युंकि वो एक समाज का हिस्सा है जिसमे लोगो को दुसरो के पचड़े में नहीं पड़ना, कहने को लोग दुसरो के मदद , अनजान लोगो को सहारा देने में डरते है और वही अनजान अगर आपका पडोसी हो तो दिन रात उसी के ज़िंदगी में झांक ताक करने लगते है . ये सच है की ज्यादातर बातें जो हम दुसरो को मना करते है रोकते है दबाते है आवाज़ बंद कर देते है अपनी खुद की ज़िंदगी में करते है और उन् चीज़ो के जिम्मेदार होते है. मेरा कहना है सिर्फ भारत ही ऐसा देश क्यों है जहाँ ढेरो रायचंद है .अगर वो ध्यानचंद और ज्ञानचंद या मौनचंद हो जाये तो कितना अच्छा और सुख शांति का वातावरण होगा . अगली बार मैं जब किसी से मिलूंगी तो उसे मुफ्त की सलाह मांगने पर भी नहीं दूंगी .मेरा वक़्त बर्बाद होता है . मैं उसे बस इतना कहूँगी की हो सके तो २-३ दिन बंद कमरे में खुद के साथ वक़्त बिताओ और खुद से जवाब मांगो क्या पता कितने सालो से तुम दुसरो को ही देखने समझने और दुसरो के बारे में सोचने में इतना उलझ गए हो की अपने आप को पहचानना ही भूल गए .शायद खुद में थोड़ी सुधार लायी जाये तो दुसरो से शिकायत काम होंगी

Sunday, 13 August 2017

वो एक नज़र तेरा !

वैसे तो पिछले कई दिनों से मैंने तुम्हे नोटिस किया था ,की तुम छुप छुप कर देखते हो ,पर रंगे हाथो पकड़ने की ख्वाहिश दिल में थी ,फिर क्या था एक बगल में मेरे ही बेंच पर बैठी क्लासमेट ने कहा की वो तुझे देख रहा है ,देख-देख ,और मैं मुस्कुरा कर मुँह फेर कर बैठ गयी , अरे बस कुछ पल के लिए ही मुँह फेरा , कहा मन लग रहा था उस सब्जेक्ट को पढ़ने में बार बार कोई इनर वॉइस कह रहा था देखने दे क्या हो गया !
बस मैं पलट गयी ,और तुम पकडे गए ,तुम मुझे ही देख रहे थे , तुम्हारी नजरें नीची हो गयी और मेरे हाथो की पेंसिल गिर गयी जमीन पर , मैं झुकी पेंसिल उठाने और फिर से तुमने देखा !
मुझे कैसे पता? अरे क्यूंकि मैंने भी तो देखा की क्या तुम देख रहे हो .

'यूँ ही चलते आँखों के सिलसिले , ना जाने कब दिल तक उतर गए
ख्वाब ही होगा जागती आँखों का , हकीकत में तो हम-तुम कितने बदल गए "
प्रज्ञा ठाकुर
#दिल से

सुरक्षा और सम्मान


बारिश बहुत तेज़ हो रही थी , ना तुम छाता लाये न मैं ,अचानक आयी बारिश , बिन बुलाये मेहमान की तरह ही तो होती है तैयारी का मौका ही नहीं देती , खुद को बचाने की !
आज कॉलेज में फंक्शन था सो साड़ी पहनी sciffon की ,पर क्या पता था सुबह से लोग तारीफ कर रहे थे अचानक मुझे खुद के इस फैसले पर दुःख होगा , काश जीन्स ही पहन लेती , या छाता ले आती अब , घर कैसे जाउंगी ?
ये सब मैंने मन में सोचा बहुत irritate थी पर बोली नहीं , अचानक तुमने अपनी ब्लू bleasre दे दी और कहा चलो मैं तुम्हे घर छोड़ देता हूँ .
तुम.. इतनी दूर मुझे ड्राप करोगे लेट होगा तुम्हे , मैंने यूँ ही बोला , मुझे पता था तुम्हारा मुझे ड्राप करना ही ठीक रहेगा मैं बहुत uncomfortable हूँ ,
तुम शायद मन ही पढ़ रहे थे , मैंने कहा ना मैं तुम्हे घर ड्राप कर दूंगा , और तुम चल पड़े , बहुत ही खूबसूरत एहसास था सुरक्षित महसूस हुआ ,
भीड़ में बस में चढ़ी तो तुमने अपने हाथ से बढ़ती हुई भीड़ को रोक लिया ,इतनी भीड़ में भी एहसास नहीं हुआ किसी ने मुझे धक्का नहीं मारा , किसी ने घुरा भी नहीं ,तुम पहले घूर देते थे , जो भी मुझे देखता तुम बस उन्हें देखते मुस्कुराते हुए ,
इससे पहले भी ऐसा हुआ था इतना सुरक्षित मैंने तब महसूस किया जब पापा साथ होते थे , तुमने आज कितना ऊँचा स्थान पाया मेरी नज़रो में ,
शुक्रिया काश ज़िंदगी में ये एहसास हर लड़की को हो एक बार , आज भी मुझे याद है तुम्हारा ऐसे मेरा साथ देना , हाँ हम बहुत कम मिले लेकिन जब भी तुमसे मिलना या तुम्हारे साथ जाना हुआ मुझे वक़्त ही नहीं लगता सोचने में , बस हाँ ही निकलता है !!


प्रज्ञा ठाकुर

मेरा स्वाभिमान अभी जिन्दा है !!!

                                  मेरा स्वाभिमान अभी जिन्दा है
सुन कबसे बोल रहा हूँ , मुँह क्यों सुजा रखा है ,जवाब क्यों नहीं दे रही ? नहीं बात करनी बोल दे . ठीक है मैं जा रहा हूँ भाड़ में जा तू मत सुन मुझे क्या ?
अच्छा चल बता अब हुआ क्या ? कुछ तो बता , मैंने कुछ गलत कह दिया ? कोई मेरी बात बुरी लगी तुझे ?
 नहीं कुछ नहीं तुम जाओ .
बस इतना ही बोल पायी मैं, कहने को तो शब्दों और शिकायतों का भंडार था , पर फायदा नहीं दिखा कुछ भी कहने सुनने का , तुम्हे समझ आती तो तुम ऐसा करते ही क्यों , फालतू में बहस बढ़ेगी तर्क वितर्क होगा न तुम मानोगे अपनी गलती और ना मैं खुद को सुकून दिला पाऊँगी , जाने दो पर ऐसा कब तक चलेगा ?
रोज़ाना की तरह ही लोकल में जा रहे थे और मैं हस रही थी मैंने तुमसे एकदम खुश हो के पूछा था अरे कल संडे है कही चलते है सबलोग , और तुमने मेरी बात को अनसुना करके मुझे बोला धीरे बोल धीरे सब सुन रहे ,कितना तेज़ बोलती है . बस एक गहरा सन्नाटा मेरे भीतर तक रक्त चाप की तरह बह गया ,खामोश तो ऐसे हुई की अब अगला शब्द ही न निकले जुबान से , और तभी मेरे गालों पे जो ख़ुशी की लालिमा थी क्रोध के लाल बादल में बादल गए.
अब कही जाना तो दूर तुझसे एक शब्द बोलने का जी नहीं चाहता , खुद को समझते क्या हो तुम लोग ?क्या मैंने कोई गाली दी ? कोई ऐसी अश्लील बात कह दी जो पब्लिक प्लेस पे नहीं कहते ? क्या मैंने इतना तेज़ बोल दिया की सैंकड़ो लोग मुड़ कर देखने लग गए ? अगर लोग देखेंगे सुनेंगे भी तो क्या हो गया उनकी प्रॉब्लम है मेरी नहीं ,और कान में धीरे बोलूंगी तो उन्हें डाउट नहीं होगा की पता नहीं ये लोग क्या बाते कर रहे ?तब लोग क्या सोचेंगे ?खुद तो कितनी तेज़ बाते करता है ph  पर ,मैंने कभी कुछ कहा ? बस मैं लड़की हूँ तो जनम से ही मुझे धीरे बोलने की सलाह मिल रही ,यही सब मन में आया ,घोर निराशा ,उदासी ,सवाल ,गुस्सा , बहुत फ़्रस्ट्रेटेड थी मैं !
अरे चुप क्यों हो गयी आगे तो बोल , तुमने कहा !
नहीं , अभी कुछ नहीं तुम बोलो ,मैंने कहा
जानती थी मैं तुझसे नाराजगी दिखा कर कुछ उखाड़ नहीं सकती , तू किसी राजनेता की तरह लॉजिक देगा , और हो सकता है और भी ऐसी बात कह दे जो मुझे और गुस्सा दिलाये हर्ट करे ,तुम लड़को को समझ ही नहीं आती किस बात से हमारे स्वाभिमान को चोट लग सकता है !
लेकिन मन ही मन तेरे शब्द कान को याद दिला रहे थे ,ishhhhh धीरे बोल , क्यों मेरी आवाज़ क्यों दबा रहे ? पर आदत तो मुझे भी है खामोश रहने की सो आज भी चुप हो गयी मैं हर बार की तरह .ह्यूमेन ही तो सह -सह कर अपनी हदें तये कर ली , की तुमलोग अब रोज़ नए फतवे बनाते हो ,मेरी उम्र का ही तो है तू और खुद कुछ नहीं सीखना पर मुझे सारा ज्ञान बाँट देता है जो भी तेरे दिमाग में है .
तुमने फिर अपनी बाते कहनी शुरू कर दी , और तुम्हे कुछ फर्क नहीं पड़ा की मैं चुप क्यों हो गयी .
घर पहुंच कर फिर मैंने तुम्हारे साथ न जाने तक का भी बड़ा फैसला लिया ,कई दिनों तक हमारी बात नहीं हुई ! मुझे अभी भी उम्मीद थी तुम समझ जाओगे और काश दोबारा ऐसा ना करो ,पर तुम्हे कैसे समझाऊ ? अच्छा ही है तुम जैसे लोग जो मेरी आज़ादी दबाते है उनसे मुझे कोई बात नहीं करनी , पर तुम्हे ये बात समझ क्यों नहीं आयी.
फाइनली तुमने कॉल किया ? चल रही संडे क्या प्लान है ? मैंने कहा नहीं मुझे काम है , नहीं आ सकती ,तुमने ओके कह कर ph रख दिया और ,मैंने सोचा ये हमारी आखिरी बात है , घटिया इंसान खुद भी उसी जुबान से चिल्लाता है और मुझे कैसे बोला चुप हो जाओ , अब जो गुस्सा और विचार था मन में मेरे, वो बस उस बात का नहीं रह गया अब तो तुम्हारे लापरवाह रवैय्ये पर भी  था की तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता मैं बात करू या नहीं , ओह तुम यही तो चाहते थे .
बस दोबारा कॉल आया ''सुन तू नाराज़ है क्या ? कोई बात ? तुम्हारे इतना कहते ही ,मुझे एहसास हुआ , मैं भगवान की बनायीं सबसे खूबसूरत रचना हूँ , जलती -धधकती बाती से मोम हो गयी ,
अरे उस दिन मैंने कुछ बुरा कह दिया तो I am sorry , शायद मैंने ज्यादा रियेक्ट किया , तेरी बातो पे ध्यान नहीं दिया , तेरी आवाज़ ...,तुम कह ही रहे थे की , मैंने बोला कोई बात नहीं , मुझे बुरा नहीं लगा
एक हफ्ते का गुस्सा तो एक सॉरी ने शांत कर दिया , लेकिन मन डर गया की तू इसके आगे जो भी बोलेगा वो फिर मुझे हर्ट न कर दे , इतना अच्छा तू नहीं की आगे नहीं टोकेगा पर ये और  बोल सकता है की आगे तू भी धीरे बोलना पब्लिक प्लेस पर ,और मेरे खून में फिर उबाल आ जायेगा , जानती जो हूँ तुम लोगो को ,जिसकी सोच बदलना और अपनी बात समझाना मेरे बस में नहीं , इस जनम इस देश में तो नहीं .
तभी तूने कहा सुन बता अब चलेगी ?
मैंने भी  कह दिया हाँ लेकिन वहाँ तो मैं गाउंगी, चिल्लाऊंगी , नहीं तो चुप चाप बैठने नहीं जाउंगी ...
ठीक है मेरी माँ चल तो सही ...मैंने भी धीरे बोला इस बार और तुम्हे दोबारा हर्ट करने का मौका ही नहीं दिया ..........
 पर क्या ठीक किया  था मैंने ? 

Sunday, 2 July 2017

Aye zindgi (अये ज़िंदगी) !

Aye zindgi !
Mil kabhi achanak se yun hi
Ki mujhe teri kami si lag rhi
Kal ki aayi khushi ko keh de thehar jane ko
Aaj ki barish se keh de haule barse jara
Koyal ki kuk ki kami si lag rahi aaj
Garjte badalo ne unhe rok liya hai
Zara waqt mile to aana chutti lekar
Bahut si baate karni hai tumse milkar
Sunhre se mausam halki barish ,halka dhoop khila ho
Hawaye jo tez hai wo haule haule chal rahi ho
Meri pyari koyal jab kukne lagi ho
Aur aasman saaf neela ho ,bina kisi kale badal ke
Tab milna aur chai ki pyali lekar
Yahi balcony me baithkar guftagu karenge
Mujhe intzaar rahega tera aana jarur

...bahut kuchh hai kehne ko
Par adhure pan ki adat hai mere kahaniyo ko bhi
Jaisi adhuri si hai zindgi meri !!!
Pragya Thakur

आकाश अनंत

बस एक अंत है जीवन का आकाश
और वही आकाश अनंत है जीवन की इच्छाओं का
उसी ने समेटे शीतलता चाँद की ,
और वही ताप समेटे सुरज सा
उसी की कोई सुरूवात नहीं दिखती
और ना ही उसके अंत का कोई पता
बस वही आकाश  सच है
शांत दूर तक फैला हुआ !!!
प्रज्ञा

I do understand!!

I look at him in pain, And lightly smile again. He might think I jest, His sorrows, wounds, unrest. I've fought battles on my own, Survi...