Wednesday, 19 October 2022

स्त्रियां

कुछ स्त्रियां बंजर होती जाती है
खेतों की भांति
जिन्हें नहीं मिलती 'खाद'
वो जो समझे की,
क्यों ख़त्म हो रहीं इसकी क्षमताएं
क्या हैं नहीं जो समय के साँचो में
इनके पास से छीन लिया गया
सबसे अधिक प्रेम करने वाली
क्यूँ एकांतवास में उदासियाँ सी
रहने लगी
क्यूँ समंदर हो गई खारे पानी का
जो किसी झड़ने सी आयीं थी
क्यूँ मुरझा गईं वक़्त से पहले कितनी
जिसपर भँवरों का बैठना लगा हीं रहता था
क्यूँ बन गयी दासी अपने हीं
बसाय घरों की
अपने बच्चों से भी बिछोह कर के,
जी लेती है स्त्रियां एक समय बाद
जो पहले गर्भ में फ़िर छाती से
लगाए हीं घूमती जाती थी
एक वक्त के बाद ना उम्मीद सी
बस पकाती हैं रोटियां
स्त्रियां बुढ़ापे तक ख़ीर पकाएं
तो समझना की खाद डाली जा रहीं है
उसके सपनों को ज़िंदा रखने में
किसी ने मेहनत की हैं
किसी ने उसके प्रेम को अपने प्रेम से
सिंचना छोड़ा नहीं है.

I do understand!!

I look at him in pain, And lightly smile again. He might think I jest, His sorrows, wounds, unrest. I've fought battles on my own, Survi...