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Showing posts from March 19, 2017
वो ईमारत
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इस सड़क से गुजरते हुए मुझे वो पुराना, कुछ घर जैसा कुछ मंदिर सा मेरे बचपन की यादें लिए मेरे पहले प्यार की सुरुवात जिस जगह से हुई थी ... जहाँ मेरा पहला सबसे प्यारा दोस्त बना था वही स्कूल दिखा था जी चाहता था दीवारों को छू कर यादों को महसूस करू या मंदिर की चौखट समझ कर सर झुका दू पर मैं किसी काम में उलझी सी थी वक़्त ही नहीं था मेरे पास मैं भी आगे की तरफ बढ़ती गयी थी और वो ईमारत पीछे छूटती गयी थी ... <3 Pragya Thakur ऐसा नहीं की बचपन तुझे मैं भूल गयी जब भी आयी दिल्ली की याद ,दिल वही गया जब भी बस्ते लेकर बच्चे सड़को पे मिले जहं में था देखो मेरा स्कूल गया.......
माली
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पतझड़ पतझड़ - डाली डाली , दुःख से तड़पे वन का माली , कब से तिनके भीगा रहा , सुखी उपवन सुखी डाली , अब का सावन ऐसा आया , ना धुप ही थी , ना थी कोई छाया , घूम - घूम कर देख रहा था , गीली उपवन , सुखी काया , मन भी ऐसा ही दर्पण है , बाहर से सुंदर , भीतर से , बड़ा ही निर्मम है ...... कोमल कोमल सुंदर सुंदर मन का एक एक अंतर - अंतर , दुर्बल मन को करने वाला , है यही कोई भीतर - भीतर , क्या सावन क्या बसंत मन भावन क्या बदरा क्या सूखा ... जब मन हो व्याकुल , कोई नहीं दे पाए माली को संतुष्टि , छपण भोग भले ही दे दो रह जाये मन सुखा , माली भूखा ! @ प्रज्ञा ठाकुर
1 फ़िक्र
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मुझे फिर कहते कहते चुप हो गए तुम हैरान सा करने को अक्सर ऐसा करते हो ? की मुझे परेशां सा करने को अक्सर ऐसा करते हो ? आते हो पास में कुछ कहने को फिर बिन बोले ही , आकर पास में क्यों लौट जाते हो मुझे हैरान सा करने को अक्सर ऐसा करते हो ? की मुझे परेशां सा करने को अक्सर ऐसा करते हो? कहते हो रुक जाओ जरा कुछ कहना है फिर रोक कर हो पूछते , क्यों हो खड़ी ? हो जाऊ जो तुमसे खफा इस बात पे बन के बड़े मासूम से फिर बोलते अच्छा तो अब बता दो क्यों हो खड़ी मुझे हैरान सा करने को अक्सर ऐसा करते हो ? की मुझे परेशां सा करने को अक्सर ऐसा करते हो? पूछते रहते हो मेरा हाल तुम पर बोलते तुम क्यों नहीं तुम्हे है फिकर ... हर घडी मुझे छेड़ना और टोकना पर ये दिखाना की तुम्हे नहीं मेरी फिकर मुझे हैरान सा करने को अक्सर ऐसा करते हो ? की मुझे परेशां सा करने को अक्सर ऐसा करते हो ? !!! @ प्रज्ञा ठाकुर