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उसकी शादी और आख़िरी ख्वाहिश
अपनी शादी कुछ ठीक से याद नहीं पर शादी की खरीदारी करनी थी नई साड़ियां, गहने, चप्पल और ढ़ेर सारा मेकअप का सामान, मुझे अचानक लहंगे की दुकान पर ख़्याल आया कि लहंगा लाल और गुलाबी नहीं लेना, मेकअप मैं लगाती नहीं,सोने के गहने का क्या करेंगे मुझे तो माता सीता जैसे वनवासी रूप की आदत है जबतक सहेलियां हज़ार दफ़े बोल कर लड़ कर मुझे ख़ुद ना तयार कर दे,शादी अगर थोड़ी सादगी वाली होती कम भीड़ पर घरवाले कहां सुनने वाले थे,मैं ही बेटा मैं हीं बेटी मैं हीं बड़े नाम वाली बहुत लोग आने वाले थे और मुझसे बात करते मुबारक बाद दुआएं और एक पल अकेला नहीं मिलने वाला था . खैर 'होईहे वोही जो राम रची राखा' तो शादी का दिन था बहुत सारे शोर और तमाशो के बाद बारात दरवाजे पर थी और मैं कमरे में सज धज कर अकेली गौरी पूजन में लीन, मां और ताई जी ने कहा कि कोई इस कमरे में नहीं आएगा दरवाजा बाहर से बंद कर रहें और कोई कितना भी आवाज़ लगाए बोलना मत , मां गौरी से मांग लो आख़िरी बार जो तुम्हें चाहिए , ऐसा कहकर मां अचानक उदास हो गई और मेरे सिर पर हाथ फेर गईं, मैं जानती थी कि मां को पता है क्या माँगूंगी, पर आज नहीं ये आख़िरी दफ़ा आख़िरी मौका ...
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