Posts

Showing posts from May 20, 2018

एक बेचैन नींद !©

Image
एक बेचैन नींद सुकून तलाशती अर्धरात्रि को , फिर थक कर पलकों में छुप जाती और फिर आंखे खुल जाती वो जग जाती एक बेचैन नींद किसी का होकर भी ना होना किसी को खोकर भी ना खोना जाने देना उसे फिर , उसकी यादों से गुफ्तगू करना रात-रात जागना और उसे अपने सिरहाने पास कहीं महसूस करना अजीब दुविधा सी होना जैसे दरिया के बीचों बीच फॅसे हो एक चट्टान के टुकड़े के सहारे लटके हो जानते हो उभर नहीं सकते लेकिन डूब ना सकना अजीब कश्मकश होना हालातें बेबस होती है नींद सुकून तलाशती है ऐसा कई बार होता है ऐसा हर बार होता है रात बीत जाती है नींद बेचैन रहती है ! ©प्रज्ञा ठाकुर