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Showing posts from September 3, 2017

मन वाबला !©

मन बावला उड़ता फिरे कभी दिल जिधर ,कभी दर -बदर कभी किसी पुराने मोड़ पर कभी इस शहर, कभी उस शहर जाने कैसा है ये हमसफ़र कभी किसी पुरानी याद में खोया-खोया सा रहे , कभी किसी पुरानी बात में उलझा उलझा सा फिरे कभी आने वाले पल की फ़िक्र में , मायूस सा ज़िंदगी की पहेलियों में जकड़ा हुआ भटका सा एक मैं मुसाफिर हूँ - एक है मुसाफिर मन मेरा ! मन वाबला , मन बावला!!! ©प्रज्ञा ठाकुर

दीवाने बाबू की दीवानी नीलू !©

हर रोज़ की तरह आज भी साम्नाये दिन था , बस एक फर्क था मेरा आज एग्जाम था कॉलेज में , रोज़ की तरह अपने पड़ोसी मेहता अंकल का लड़का मुझे बाइक से ड्राप कर देता था , कॉलेज में वो मेरा सीनियर था , हाँ २ साल से साथ जा रहे है ,सो थोड़ी सी दोस्ती आगे बढ़ी है , कभी-कभी इशारो में एक दूसरे से गुफ्तगू हो जाती है , या कभी एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा देते है , रास्ते में बाइक पर तो कॉलेज सम्बन्धी दुनिया भर की बातें होती है , ,खूब ठहाके लगते है कभी- कभी किसी उटपटांग सी दूसरों की बातों पर . चुप -चाप कॉलेज परिसर में दाखिल होते ही, दो अजनबियों की तरह अपने- अपने क्लास में चले जाते है ,ताकि लोग तरह-तरह की बातें न फैलाये , और हमारी जिंदगी में ताका झांकी न करें, बस इतना ही गहरा और समझदार रिश्ता है हम दोनों का , कभी- कभी लौटते वक़्त रास्ते में रुक के मंदिर चले जाते है या आइस-क्रीम खा लेते है , आइस-क्रीम वाला काका , हमे अफसर बिटिया ,और इनको दीवाने अफसर बाबू कहते है , क्यों ? क्यूंकि हम जो भी बातें करते है वह खड़े होकर चुप -चाप सुनता है , इसने कुछ दिन पहले की हमारी बातें सुन ली थी - अलोक(दीवाने बाबू )- मै

आज़ाद हूँ! ©

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आज़ाद हो तुम ,मैं भी आज़ाद हूँ ये सुना राजपथ आज़ाद ही तो है अमर जवान पे सालो से जल रही ये तम की लौ आज़ाद ही तो है रोज़ रोज़ मरते "शहीद " आज़ाद ही तो है रोज़ रोज़ के कत्ले -आम आज़ादी ही तो है आज़ाद है ये महल(राष्ट्पति भवन ) आज़ाद हिन्द का आज़ादी ही तो मिली है अंग्रेज़ों से इन्हे . तिरंगा आज़ाद है ,नेता आज़ाद है ,जनता आज़ाद है आज़ादी की पराकाष्ठा है सदियों से , चंद ब्यापारियों को ,नेताओ को छोड़ दें तो , दो मुट्ठी फसल पे जीते किसान आज़ाद है बेरोज़गारी की मार सहते युवा आज़ाद है बीमारियों की चपेट में मरते जन आज़ाद है सीमा पर सीने पर गोली खाते जवान आज़ाद है कड़ोड़ो का घपला करते नेता जी आज़ाद है इज़्ज़त गवा कर सड़क किनारे पड़ी अबला आज़ाद है राम-कृष्ण के देश में ,बस बाबा आज़ाद है बहुत पैसा है देश में , बहुत सुरक्षित है , रोज़गार है और बोल बच्चन वाली हर एक सत्ता आज़ाद है :-) ©प्रज्ञा ठाकुर

'इश्क़' ©

सुकूं नहीं है जिसमे,  फिर भी करते है जुनूं होता है ऐसा की,  लोग मर गुजरते है कोई काम नहीं होता कोई दाम नहीं होता लोग कहते है ऐसा इसका कोई इनाम नहीं होता! बस जीने को करते है लेकिन मर-मर के करते है हाँ इसे 'इश्क़' कहते है ! ©प्रज्ञा ठाकुर