Thursday, 7 September 2017

मन वाबला !©

मन बावला उड़ता फिरे
कभी दिल जिधर ,कभी दर -बदर
कभी किसी पुराने मोड़ पर
कभी इस शहर, कभी उस शहर
जाने कैसा है ये हमसफ़र
कभी किसी पुरानी याद में
खोया-खोया सा रहे ,
कभी किसी पुरानी बात में
उलझा उलझा सा फिरे
कभी आने वाले पल की
फ़िक्र में , मायूस सा
ज़िंदगी की पहेलियों में
जकड़ा हुआ भटका सा
एक मैं मुसाफिर हूँ -
एक है मुसाफिर मन मेरा !
मन वाबला , मन बावला!!!



©प्रज्ञा ठाकुर

दीवाने बाबू की दीवानी नीलू !©

हर रोज़ की तरह आज भी साम्नाये दिन था , बस एक फर्क था मेरा आज एग्जाम था कॉलेज में , रोज़ की तरह अपने पड़ोसी मेहता अंकल का लड़का मुझे बाइक से ड्राप कर देता था , कॉलेज में वो मेरा सीनियर था , हाँ २ साल से साथ जा रहे है ,सो थोड़ी सी दोस्ती आगे बढ़ी है , कभी-कभी इशारो में एक दूसरे से गुफ्तगू हो जाती है , या कभी एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा देते है , रास्ते में बाइक पर तो कॉलेज सम्बन्धी दुनिया भर की बातें होती है , ,खूब ठहाके लगते है कभी- कभी किसी उटपटांग सी दूसरों की बातों पर .
चुप -चाप कॉलेज परिसर में दाखिल होते ही, दो अजनबियों की तरह अपने- अपने क्लास में चले जाते है ,ताकि लोग तरह-तरह की बातें न फैलाये , और हमारी जिंदगी में ताका झांकी न करें, बस इतना ही गहरा और समझदार रिश्ता है हम दोनों का , कभी- कभी लौटते वक़्त रास्ते में रुक के मंदिर चले जाते है या आइस-क्रीम खा लेते है , आइस-क्रीम वाला काका , हमे अफसर बिटिया ,और इनको दीवाने अफसर बाबू कहते है ,
क्यों ? क्यूंकि हम जो भी बातें करते है वह खड़े होकर चुप -चाप सुनता है , इसने कुछ दिन पहले की हमारी बातें सुन ली थी - अलोक(दीवाने बाबू )- मैं सोच रहा हूँ IAS के लिए prepare करू फाइनल ईयर है , तुम भी कहीं अच्छा सा कोचिंग देख लो , अभी से तैयारी करोगी तो आसानी से हो जायेगा पहले ही एटेम्पट में ,
नीलू- हाँ मैं भी यही सोच रही थी , मेरे पापा का सपना है ! फिर शायद पापा हमारी शादी के लिए भी मान जाये ,जब बेटी दामाद दोनों लाल बत्ती की गाड़ी से उतरेंगे ...
अलोक -हाँ तब तो हमारे मोहल्ले वालो की भी जुबान बंद होगी ,
आइस-क्रीम वाला बोल पड़ा , मुस्कुराते हुए - बिटीया भगवान आप दोनों को सफलताएं दें, तब आप दोनों इस गरीब काका को मत भूल जाना !
अलोक - अरे काका यार !आप कैसी बात कर रहे , तब तो हम आपके दुकान पर खड़े होकर आइस-क्रीम जरूर खाएंगे ! बस इतनी सी बात हुई थी और तबसे मैं अफसर बिटीया हूँ , और अलोक दीवाने अफसर बाबू ,मेरे कारन !!
अलोक -सुनो आज पेपर जल्दी ख़त्म होगा तो २ बजे मूवी देखने चलोगी ? ना नहीं सुनेंगे देख लो फिर हम बहुत बिजी होने वाले , फिर ना ले जा पाएंगे !
नीलू - अच्छा बाबा ठीक है , कौन सी लगी है ?
अलोक- the dark knight rises ...
मूवी देखि और बाहर निकल कर आइस-क्रीम वाले के पास गए !
अलोक- काका दो आइस-क्रीम , मैडम के लिए बटरस्कॉच और मेरे लिए तो काका अपनी मटका कुल्फी !
नीलू- ओह नो ! चलो यहाँ से मेरे पड़ोस वाले श्याम अंकल ने देख लिया , हमे निकलना चाहिए
अलोक-अरे हद बात करती हो.देख लिया तो कौन सा कोई गलत काम कर रहे आइस-क्रीम ही तो खा रहे ! इन् पड़ोसियों की भी , हमसे मिलवा देना कोई बात हो तो , और टेंशन मत लो इतना ,इनके लड़के को देखे थे , गांजा फूकते हुई अपने DC के आगे !
नीलू- प्लीज घर चलो , ना जाने क्या बोल दे वो घर पे
घर आयी घबराई सी मैं , पापा ने बस इतना कहा आज से तुम्हारा कॉलेज जाना बंद , लड़का देख रहे तुम्हारी शादी करनी है ,
बस फिर क्या था ? मेरे सपने टूटने ही वाले थे , दीवाने बाबू और मेरी दोस्ती ,रिश्तेदारी में बदलने के ही नहीं बल्कि IAS बनकर पापा के सामने आने के भी सपने , कई सारे सपने
३ साल बाद ,
हम दोनों आज फिर से साथ बैठे है एक साथ , आइस-क्रीम वाले भैया के पास , एक दूसरे के हाथो में हाथ लिए , बस एक ही फर्क है . आइस-क्रीम खाने को नहीं मिलेंगे , तुम कुछ कहते नहीं आजकल ,चुप ही रहते हो , खाते भी नहीं , किसी से बात नहीं करते बस यहाँ आकर घंटो बैठे रहते हो मेरी यादों में , उन्ही लम्हो में कैद होकर आखिरी लम्हा मेरे साथ बिताया हुआ , जिंदगी तुम्हारी डार्क neight सी हो गयी है !
मुझे मालूम था की फिर ये लम्हा नसीब ना होगा !
अंकल ने माँ को कहा था , आपकी बेटी बदचलन है पड़ोसी के साथ सिनेमा हॉल के बाहर रोमांस फरमा रही, मुझे बहुत अफ़सोस है भाईसाब, आपने कैसे संस्कार दिए , माँ -पापा के खून में उबाल था , मुझे सजा मिली उम्र कैद (शादी की) और मैंने सबसे दूर अपनी बेहतरी के लिए जाना समझा , बस ज़रा सा जहर था जिसने मुझे तुमसे दूर करके पास कर दिया , जानती हूँ तुम तब से खामोश हो दुनिया के लिए ,लेकिन मुझसे तो रोज़ बातें होती है तुम्हारी ....
फिर मिलेंगे नयी दुनिया में , इंतज़ार करना ,' मोहब्बत कभी अधूरी नहीं होती' बस नज़र का फ़र्क है
तुम्हारी दीवानी नीलू

©प्रज्ञा ठाकुर

आज़ाद हूँ! ©

आज़ाद हो तुम ,मैं भी आज़ाद हूँ
ये सुना राजपथ आज़ाद ही तो है
अमर जवान पे सालो से जल रही
ये तम की लौ आज़ाद ही तो है
रोज़ रोज़ मरते "शहीद " आज़ाद ही तो है
रोज़ रोज़ के कत्ले -आम आज़ादी ही तो है
आज़ाद है ये महल(राष्ट्पति भवन ) आज़ाद हिन्द का
आज़ादी ही तो मिली है अंग्रेज़ों से इन्हे .
तिरंगा आज़ाद है ,नेता आज़ाद है ,जनता आज़ाद है
आज़ादी की पराकाष्ठा है सदियों से ,
चंद ब्यापारियों को ,नेताओ को छोड़ दें तो ,
दो मुट्ठी फसल पे जीते किसान आज़ाद है
बेरोज़गारी की मार सहते युवा आज़ाद है
बीमारियों की चपेट में मरते जन आज़ाद है
सीमा पर सीने पर गोली खाते जवान आज़ाद है
कड़ोड़ो का घपला करते नेता जी आज़ाद है
इज़्ज़त गवा कर सड़क किनारे पड़ी अबला आज़ाद है
राम-कृष्ण के देश में ,बस बाबा आज़ाद है
बहुत पैसा है देश में , बहुत सुरक्षित है , रोज़गार है
और बोल बच्चन वाली हर एक सत्ता आज़ाद है :-)


©प्रज्ञा ठाकुर

'इश्क़' ©

सुकूं नहीं है जिसमे, 
फिर भी करते है
जुनूं होता है ऐसा की, 
लोग मर गुजरते है
कोई काम नहीं होता
कोई दाम नहीं होता
लोग कहते है ऐसा
इसका कोई इनाम नहीं होता!
बस जीने को करते है
लेकिन मर-मर के करते है
हाँ इसे 'इश्क़' कहते है !

©प्रज्ञा ठाकुर

I do understand!!

I look at him in pain, And lightly smile again. He might think I jest, His sorrows, wounds, unrest. I've fought battles on my own, Survi...