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मुक़्क़मल इश्क़ !©

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चलो एक पूरी सी कहानी कहानी लिखते है दो अधूरे किरदार मिल कर ! तुम्हें बस आना है मेरी ज़िंदगी में बस एक गुलाब लेकर और ज़माने से छुपते-छुपाते ,किसी किताब में रखकर एक अधूरी चिठ्ठी के साथ जिस पर ,कुछ बेमतलब की शायरी लिखीं हो जिसका मेरे वज़ूद से कोई लेना देना ना हो ,लेकिन फिर भी मैं पढ़ कर मुस्कुरा दूँ और शरमा कर सोचूँ की तुमने मेरे लिए हीं  लिखीं है ! हाँ वो और बात है की मुझे पता होगा की तुम शायरी नहीं लिखते. फिर उस गुलाब को चुम कर मैं अपनी किसी ख़ास डायरी में छुपा लुंगी जहाँ घर वालों की सालो-साल नज़र ना पड़े . फिर मन ही मन मैं तुम्हें बहुत चाहने लगु और दीवानगी का आलम इस कदर हो की हर मंगल वार मंदिर जाऊ और बाल- ब्रह्मचारि हनुमान जी से तुम्हें मांगू उन्हें बूंदी के लडडू चढ़ा कर ,और सारे सोमवारी करुँ की तुम ही मेरे जीवन साथी बनो पर तुमसे कुछ ना बोलूं. तुम रोज़-रोज़ यूँ हीं मेरी गली के चक्कर लगाना और कभी-कभी चोरी से मुझे खिड़की से झांकते पकड़ लेना .ऐसे ही मुझे मेरी दुआं कबूल सी लगने लगे और तुम्हें भी तुम्हारे बिना पूछें हुए सवाल  का जवाब हाँ में मिल जाये ! बस रूहानी इश्क़ हो ,दोनों में हो गज़ब का ,इशा