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Showing posts from December 23, 2018

दिसंबर में तुम्हारी याद लाज़िमी है! ©

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दिसंबर में तुम्हारी याद लाज़िमी है तुम मेरी तन्हाई के इकलौते वारिस हो जिसे हम अब ये देना चाहेंगे । तब जबकि दिसंबर सर्द होकर भी मुझे महसूस नहीं होने दे रही अपनी उपस्थिति क्यूंकि मैंने ख्यालों का एक मौसम रचा है जहां तुम मेरी जान, मेरे साथ रहते हो ! जब भी ठंडी हवा दूर से मेरे पास आती है तुम्हारी नज़र जो कि मेरे बालो पर है वो उस ठंडी हवा को मुझे छूते देख लेती है । तुम मुझपर अपना एकाधिकार समझते हो तो उस हवा से जब मेरी लटे उड़ती है तुम मुझे अपने और करीब ले आते हो तुम मेरी उंगलियों को अपनी उंगलियों से बांध लेते हो वहीं सात जन्म वाले फेरों की गांठ के जैसे और अपने सीने से लगा लेते हो । हम हैरान से होकर तुम्हारी पेशानी का सबब पूछते है तुम उदास हो कर कहते हो कितने दुश्मन है जालिम हम दोनों के दरमियान जो अक्सर मुझे तुमसे छीनने में लगे है . तुम सारे खिड़की दरवाजे बंद कर देते हो पर्दा लगा देते हो और रौशनी का कतरा जो ये महसूस कराता है कि अभी भी दिन है उसकी ओर इशारा करके कहते हो 'हमें बस इतनी जरूरत इस जहान की ना कम ना ज्यादा', की मुझे तुम्हारा चेहरा बस साफ़ नज़र आए मुस्कुराते

तुझे ज़िंदा देखना था ! ©

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वो इस बात पे हैरान है की मैं खुश क्यों  हूँ? मैं तो खुश हूँ की उसे, हैरान देखना था उसने जिस तरह से छोड़ा मुझे बीच राह में, मुझे घर लौट कर, उसको परेशां देखना था उसने मेरा दिल जलाया की उसे फर्क न पड़ा मुझे ये आग बुझा कर, उसे हवा देखना था मेरी ख़ुशी माना की रुख से विदा हो गयी लेकिन, मुस्कुराने का हुनर बचा था उसे जो परेशां देखना था क्या सोचता है मेरे यार जुलाहे की मैं मुर्दा हूँ? सच कहूं तो हूँ क्यूंकि तुझे ज़िंदा देखना था ©प्रज्ञा ठाकुर