दिसंबर में तुम्हारी याद लाज़िमी है! ©

दिसंबर में तुम्हारी याद लाज़िमी है
तुम मेरी तन्हाई के इकलौते वारिस हो जिसे हम अब ये देना चाहेंगे ।
तब जबकि दिसंबर सर्द होकर भी मुझे महसूस नहीं होने दे रही अपनी उपस्थिति क्यूंकि मैंने ख्यालों का एक मौसम रचा है जहां तुम मेरी जान, मेरे साथ रहते हो !
जब भी ठंडी हवा दूर से मेरे पास आती है तुम्हारी नज़र जो कि मेरे बालो पर है वो उस ठंडी हवा को मुझे छूते देख लेती है ।
तुम मुझपर अपना एकाधिकार समझते हो तो उस हवा से जब मेरी लटे उड़ती है तुम मुझे अपने और करीब ले आते हो
तुम मेरी उंगलियों को अपनी उंगलियों से बांध लेते हो वहीं सात जन्म वाले फेरों की गांठ के जैसे और अपने सीने से लगा लेते हो ।
हम हैरान से होकर तुम्हारी पेशानी का सबब पूछते है
तुम उदास हो कर कहते हो कितने दुश्मन है जालिम हम दोनों के दरमियान
जो अक्सर मुझे तुमसे छीनने में लगे है .
तुम सारे खिड़की दरवाजे बंद कर देते हो पर्दा लगा देते हो और रौशनी का कतरा जो ये महसूस कराता है कि अभी भी दिन है उसकी ओर इशारा करके कहते हो 'हमें बस इतनी जरूरत इस जहान की ना कम ना ज्यादा',
की मुझे तुम्हारा चेहरा बस साफ़ नज़र आए मुस्कुराते हुए ।
तुम्हारे गुलाबी होठ दिखते रहे ।
मुझे तुम्हारी सांसो की आवाज़ सुनाई दे और
ये गर्म सांसें यही जो मेरे गालों से टकराती है, जो तुम्हारे भीतर से छन के आती है यहीं हवा चाहिए।
हां तो अब ये दिसम्बर मुझे उसी ख़्वाब गाह तक सीमित रखती है
जहां एक मेरी ख़ुद की दुनियां है तुम्हारे साथ की जिसमें तुम्हारी बातें और मेरी तन्हाई है।


©प्रज्ञा ठाकुर

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