Ram- ramayana

भीतर के 'प्रकाश' स्वयं के
धैर्य के दो हीं नाम
राम सिया के मध्य में
निहित जीवन ज्ञान
तप,त्याग,वचन,धैर्य,लोकलाज
रिश्तों में भी मर्यादा थी
युग  तो था अनेक रानियों का
पर एक विवाह का सिया वादा थी
पी संग वन जाने को आतुर थी
प्रभु जान रहे सब करें थे
चिंता थी कि चौदह बरस की
पर राज भोग ना जीवन कारण थी
मान रखन को साधु का
लक्ष्मी ने रेखा लांघ दिया
रावण का लिखा विनाश जो था
कारण स्वयं नारायणी ने दिया
फ़िर रचा भीषण संग्राम
जब मिल गए राम हनुमान
विजय पताका था लहराया
तब पानी पर सेतु बनाया
सिया की ली गई अग्नि परीक्षा
सिया ने ना कोई प्रश्न उठाया
प्रेम की लीला थीं कि वह
सिय को अयोध्या ले जाते
धर्म था ये की जा कर के
वो पावन है सबको बतलाते
पर होना था युग का अंत
उस वक़्त भी मैला मन था कुछ का
एक धोबी कि मलीन दृष्टि थी
माता पर संदेह किया
फ़िर राजा को था फ़र्ज़ निभाना
पड़ा सिया को वन में जाना
लभ कुश जन्माई माई ने वन में
दिखा दिया अबला नहीं माई
अपनी लड़ाई स्वयं लड़ी
लव कुश को दिया संस्कार
बेटे ने फ़िर जग में घूम कर
निंदा किया सबका हीं अपार
धर्म सिखाया युद्ध सिखाया
मां ने सिखाई मर्यादा
त्याग की मूरत नहीं झुकी फ़िर
अयोध्या को फ़िर ना अपनाया
अंत हुआ दुराचारी का अंत हुआ वह काल
धरती से जन्मी धरती में मिली
और मिल गए फ़िर सीता राम

                प्रज्ञा ठाकुर©     

Comments

  1. बेहतरीन काव्य सृजन..
    जय सिया राम

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  2. वाह! अद्भुत रचना🙏♥️

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