Monday, 14 August 2017

ख़ामोशी



 दरकती  हुई सांसे  ख़ामोशी  से  कह  रही-
वो  एक  उम्र  भी  कम  था  तेरी  साथ  को  ,
औ आज  जब  हम  मौन  में  , तुझे  कह  भी  नहीं  पा रहे
की  एक और  उम्र  जीने  की  ख्वाहिश  है  तेरे  संग .
तो तू पास में ही हाथ को थामे,सिसकिया ले रहा !
और कह रहा खुदा कुछ पल,"इसे और देदे ".
यही  एहसास  है जो आज ना कह कर भी , बहुत कुछ कह रही !
 इसी की कमी थी जो आज मैं ,कुछ  कहने सुनने  के काबिल भी नहीं .
प्रज्ञा ठाकुर

नहीं मिली आज़ादी !



जन सत्ता की तोड़ भुजाये
बहुत सुन ली कहानी
अब भी आज़ादी जैसी क्या
कोई चीज़ है ले आनी?
नहीं जो देखी है हमने
गुलामी की वो दौड़ जहाँ,
गोली बंदूके बारूदें
से छन्नी होते थे सीना !
पर आज जो हम है देख रहे
वो भी दौड़ नहीं इंसानी !
अब अंग्रेज़ो के लिए नहीं
कोई देनी क़ुरबानी
पर अब तो वो मुश्किल दौड़ है
जहां अपनों से ही है द्वन्द
पीड़ा है बड़ी अनजानी
अपने ही देश के राज़ मुकुट से
जो हिल गया उस पौरुष से
आज़ादी के बाद की चूक एक
जिससे शहीद सैनिक अनेक
और लगे हुए अब भी देने
असंख्य क़ुरबानी बन देश भक्त
ये जो बापू थे राष्ट्र पिता
उनकी ये भूल की कीमत है
जो चले गए वो छोड़ देश
आज़ादी में भी  हुकूमत है

एक ख्याल

बहुत दिनों से एक ख्याल है मन में सोचा खुद से कह दू.हाँ सही सुना अपने आप से कुछ कहना था . मैं दुसरो को सच या झूठ बड़ी या छोटी बातें आसानी से कह जाती हूँ ,बेबाक तरीके से पर खुद से कुछ बातें करने में बहुत हिम्मत जुटानी पड़ती है . खुद को कही भी गलत ठहराना हो या किसी सचाई से रूबरू जो की तकलीफ देती हो तो कैसे करवाए ,मैं अक्सर कविता कहानियों के जरिये कह बहुत कुछ देती हूँ लेकिन खुद को क्यों नहीं समझा पाती क्यूंकि शायद उसी मुकाम पर मेरा एक लेखिका होने का दायरा छोटा होता है और इंसान होने के दायरे में सिमट जाता है और फिर वो इंसान सोचता है ,की बातों से कुछ नहीं होता या फिर ऐसा तो सबके साथ होता है ना ,आज का यह पोस्ट सबके साथ होने वाली मानसिकता पर है .
मैं नहीं मानती की सबके साथ एक ही चीज़े एक ही बाते होती है . मुझे मालूम है की कुदरत भी सबके साथ अलग अलग ही बर्ताव करती है अगर लोग कुदरत को अलग अलग तरीको से चुनौती देते है.जैसे मैं दिखती हूँ वैसे आप नहीं दिखते,जैसा मैं सोचती हूँ आपकी सोच भी उससे अलग हो सकती है अगर आप दुसरो की सोच फॉलो ना करे तो ,और ऐसा ही अलग अलग हम सबके जीवन का लक्ष्ये है. अक्सर सुनती हूँ ,ये फेल हो गया तो बड़ी बात क्या है और भी हुए है, ये डॉक्टर नहीं बन सकता क्युंकि इसके घर में कोई पढ़ा लिखा नहीं ये पढ़ाई में कमजोर है तो ये खिलाडी बनेगा या सिनेमा में जायेगा . सड़क पर तमाशबीन बने लोग किसी को सहारा नहीं देते हॉस्पिटल ले जाने में सोचते है .आवाज़ नहीं उठाते क्युंकि वो एक समाज का हिस्सा है जिसमे लोगो को दुसरो के पचड़े में नहीं पड़ना, कहने को लोग दुसरो के मदद , अनजान लोगो को सहारा देने में डरते है और वही अनजान अगर आपका पडोसी हो तो दिन रात उसी के ज़िंदगी में झांक ताक करने लगते है . ये सच है की ज्यादातर बातें जो हम दुसरो को मना करते है रोकते है दबाते है आवाज़ बंद कर देते है अपनी खुद की ज़िंदगी में करते है और उन् चीज़ो के जिम्मेदार होते है. मेरा कहना है सिर्फ भारत ही ऐसा देश क्यों है जहाँ ढेरो रायचंद है .अगर वो ध्यानचंद और ज्ञानचंद या मौनचंद हो जाये तो कितना अच्छा और सुख शांति का वातावरण होगा . अगली बार मैं जब किसी से मिलूंगी तो उसे मुफ्त की सलाह मांगने पर भी नहीं दूंगी .मेरा वक़्त बर्बाद होता है . मैं उसे बस इतना कहूँगी की हो सके तो २-३ दिन बंद कमरे में खुद के साथ वक़्त बिताओ और खुद से जवाब मांगो क्या पता कितने सालो से तुम दुसरो को ही देखने समझने और दुसरो के बारे में सोचने में इतना उलझ गए हो की अपने आप को पहचानना ही भूल गए .शायद खुद में थोड़ी सुधार लायी जाये तो दुसरो से शिकायत काम होंगी

Sunday, 13 August 2017

वो एक नज़र तेरा !

वैसे तो पिछले कई दिनों से मैंने तुम्हे नोटिस किया था ,की तुम छुप छुप कर देखते हो ,पर रंगे हाथो पकड़ने की ख्वाहिश दिल में थी ,फिर क्या था एक बगल में मेरे ही बेंच पर बैठी क्लासमेट ने कहा की वो तुझे देख रहा है ,देख-देख ,और मैं मुस्कुरा कर मुँह फेर कर बैठ गयी , अरे बस कुछ पल के लिए ही मुँह फेरा , कहा मन लग रहा था उस सब्जेक्ट को पढ़ने में बार बार कोई इनर वॉइस कह रहा था देखने दे क्या हो गया !
बस मैं पलट गयी ,और तुम पकडे गए ,तुम मुझे ही देख रहे थे , तुम्हारी नजरें नीची हो गयी और मेरे हाथो की पेंसिल गिर गयी जमीन पर , मैं झुकी पेंसिल उठाने और फिर से तुमने देखा !
मुझे कैसे पता? अरे क्यूंकि मैंने भी तो देखा की क्या तुम देख रहे हो .

'यूँ ही चलते आँखों के सिलसिले , ना जाने कब दिल तक उतर गए
ख्वाब ही होगा जागती आँखों का , हकीकत में तो हम-तुम कितने बदल गए "
प्रज्ञा ठाकुर
#दिल से

सुरक्षा और सम्मान


बारिश बहुत तेज़ हो रही थी , ना तुम छाता लाये न मैं ,अचानक आयी बारिश , बिन बुलाये मेहमान की तरह ही तो होती है तैयारी का मौका ही नहीं देती , खुद को बचाने की !
आज कॉलेज में फंक्शन था सो साड़ी पहनी sciffon की ,पर क्या पता था सुबह से लोग तारीफ कर रहे थे अचानक मुझे खुद के इस फैसले पर दुःख होगा , काश जीन्स ही पहन लेती , या छाता ले आती अब , घर कैसे जाउंगी ?
ये सब मैंने मन में सोचा बहुत irritate थी पर बोली नहीं , अचानक तुमने अपनी ब्लू bleasre दे दी और कहा चलो मैं तुम्हे घर छोड़ देता हूँ .
तुम.. इतनी दूर मुझे ड्राप करोगे लेट होगा तुम्हे , मैंने यूँ ही बोला , मुझे पता था तुम्हारा मुझे ड्राप करना ही ठीक रहेगा मैं बहुत uncomfortable हूँ ,
तुम शायद मन ही पढ़ रहे थे , मैंने कहा ना मैं तुम्हे घर ड्राप कर दूंगा , और तुम चल पड़े , बहुत ही खूबसूरत एहसास था सुरक्षित महसूस हुआ ,
भीड़ में बस में चढ़ी तो तुमने अपने हाथ से बढ़ती हुई भीड़ को रोक लिया ,इतनी भीड़ में भी एहसास नहीं हुआ किसी ने मुझे धक्का नहीं मारा , किसी ने घुरा भी नहीं ,तुम पहले घूर देते थे , जो भी मुझे देखता तुम बस उन्हें देखते मुस्कुराते हुए ,
इससे पहले भी ऐसा हुआ था इतना सुरक्षित मैंने तब महसूस किया जब पापा साथ होते थे , तुमने आज कितना ऊँचा स्थान पाया मेरी नज़रो में ,
शुक्रिया काश ज़िंदगी में ये एहसास हर लड़की को हो एक बार , आज भी मुझे याद है तुम्हारा ऐसे मेरा साथ देना , हाँ हम बहुत कम मिले लेकिन जब भी तुमसे मिलना या तुम्हारे साथ जाना हुआ मुझे वक़्त ही नहीं लगता सोचने में , बस हाँ ही निकलता है !!


प्रज्ञा ठाकुर

मेरा स्वाभिमान अभी जिन्दा है !!!

                                  मेरा स्वाभिमान अभी जिन्दा है
सुन कबसे बोल रहा हूँ , मुँह क्यों सुजा रखा है ,जवाब क्यों नहीं दे रही ? नहीं बात करनी बोल दे . ठीक है मैं जा रहा हूँ भाड़ में जा तू मत सुन मुझे क्या ?
अच्छा चल बता अब हुआ क्या ? कुछ तो बता , मैंने कुछ गलत कह दिया ? कोई मेरी बात बुरी लगी तुझे ?
 नहीं कुछ नहीं तुम जाओ .
बस इतना ही बोल पायी मैं, कहने को तो शब्दों और शिकायतों का भंडार था , पर फायदा नहीं दिखा कुछ भी कहने सुनने का , तुम्हे समझ आती तो तुम ऐसा करते ही क्यों , फालतू में बहस बढ़ेगी तर्क वितर्क होगा न तुम मानोगे अपनी गलती और ना मैं खुद को सुकून दिला पाऊँगी , जाने दो पर ऐसा कब तक चलेगा ?
रोज़ाना की तरह ही लोकल में जा रहे थे और मैं हस रही थी मैंने तुमसे एकदम खुश हो के पूछा था अरे कल संडे है कही चलते है सबलोग , और तुमने मेरी बात को अनसुना करके मुझे बोला धीरे बोल धीरे सब सुन रहे ,कितना तेज़ बोलती है . बस एक गहरा सन्नाटा मेरे भीतर तक रक्त चाप की तरह बह गया ,खामोश तो ऐसे हुई की अब अगला शब्द ही न निकले जुबान से , और तभी मेरे गालों पे जो ख़ुशी की लालिमा थी क्रोध के लाल बादल में बादल गए.
अब कही जाना तो दूर तुझसे एक शब्द बोलने का जी नहीं चाहता , खुद को समझते क्या हो तुम लोग ?क्या मैंने कोई गाली दी ? कोई ऐसी अश्लील बात कह दी जो पब्लिक प्लेस पे नहीं कहते ? क्या मैंने इतना तेज़ बोल दिया की सैंकड़ो लोग मुड़ कर देखने लग गए ? अगर लोग देखेंगे सुनेंगे भी तो क्या हो गया उनकी प्रॉब्लम है मेरी नहीं ,और कान में धीरे बोलूंगी तो उन्हें डाउट नहीं होगा की पता नहीं ये लोग क्या बाते कर रहे ?तब लोग क्या सोचेंगे ?खुद तो कितनी तेज़ बाते करता है ph  पर ,मैंने कभी कुछ कहा ? बस मैं लड़की हूँ तो जनम से ही मुझे धीरे बोलने की सलाह मिल रही ,यही सब मन में आया ,घोर निराशा ,उदासी ,सवाल ,गुस्सा , बहुत फ़्रस्ट्रेटेड थी मैं !
अरे चुप क्यों हो गयी आगे तो बोल , तुमने कहा !
नहीं , अभी कुछ नहीं तुम बोलो ,मैंने कहा
जानती थी मैं तुझसे नाराजगी दिखा कर कुछ उखाड़ नहीं सकती , तू किसी राजनेता की तरह लॉजिक देगा , और हो सकता है और भी ऐसी बात कह दे जो मुझे और गुस्सा दिलाये हर्ट करे ,तुम लड़को को समझ ही नहीं आती किस बात से हमारे स्वाभिमान को चोट लग सकता है !
लेकिन मन ही मन तेरे शब्द कान को याद दिला रहे थे ,ishhhhh धीरे बोल , क्यों मेरी आवाज़ क्यों दबा रहे ? पर आदत तो मुझे भी है खामोश रहने की सो आज भी चुप हो गयी मैं हर बार की तरह .ह्यूमेन ही तो सह -सह कर अपनी हदें तये कर ली , की तुमलोग अब रोज़ नए फतवे बनाते हो ,मेरी उम्र का ही तो है तू और खुद कुछ नहीं सीखना पर मुझे सारा ज्ञान बाँट देता है जो भी तेरे दिमाग में है .
तुमने फिर अपनी बाते कहनी शुरू कर दी , और तुम्हे कुछ फर्क नहीं पड़ा की मैं चुप क्यों हो गयी .
घर पहुंच कर फिर मैंने तुम्हारे साथ न जाने तक का भी बड़ा फैसला लिया ,कई दिनों तक हमारी बात नहीं हुई ! मुझे अभी भी उम्मीद थी तुम समझ जाओगे और काश दोबारा ऐसा ना करो ,पर तुम्हे कैसे समझाऊ ? अच्छा ही है तुम जैसे लोग जो मेरी आज़ादी दबाते है उनसे मुझे कोई बात नहीं करनी , पर तुम्हे ये बात समझ क्यों नहीं आयी.
फाइनली तुमने कॉल किया ? चल रही संडे क्या प्लान है ? मैंने कहा नहीं मुझे काम है , नहीं आ सकती ,तुमने ओके कह कर ph रख दिया और ,मैंने सोचा ये हमारी आखिरी बात है , घटिया इंसान खुद भी उसी जुबान से चिल्लाता है और मुझे कैसे बोला चुप हो जाओ , अब जो गुस्सा और विचार था मन में मेरे, वो बस उस बात का नहीं रह गया अब तो तुम्हारे लापरवाह रवैय्ये पर भी  था की तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता मैं बात करू या नहीं , ओह तुम यही तो चाहते थे .
बस दोबारा कॉल आया ''सुन तू नाराज़ है क्या ? कोई बात ? तुम्हारे इतना कहते ही ,मुझे एहसास हुआ , मैं भगवान की बनायीं सबसे खूबसूरत रचना हूँ , जलती -धधकती बाती से मोम हो गयी ,
अरे उस दिन मैंने कुछ बुरा कह दिया तो I am sorry , शायद मैंने ज्यादा रियेक्ट किया , तेरी बातो पे ध्यान नहीं दिया , तेरी आवाज़ ...,तुम कह ही रहे थे की , मैंने बोला कोई बात नहीं , मुझे बुरा नहीं लगा
एक हफ्ते का गुस्सा तो एक सॉरी ने शांत कर दिया , लेकिन मन डर गया की तू इसके आगे जो भी बोलेगा वो फिर मुझे हर्ट न कर दे , इतना अच्छा तू नहीं की आगे नहीं टोकेगा पर ये और  बोल सकता है की आगे तू भी धीरे बोलना पब्लिक प्लेस पर ,और मेरे खून में फिर उबाल आ जायेगा , जानती जो हूँ तुम लोगो को ,जिसकी सोच बदलना और अपनी बात समझाना मेरे बस में नहीं , इस जनम इस देश में तो नहीं .
तभी तूने कहा सुन बता अब चलेगी ?
मैंने भी  कह दिया हाँ लेकिन वहाँ तो मैं गाउंगी, चिल्लाऊंगी , नहीं तो चुप चाप बैठने नहीं जाउंगी ...
ठीक है मेरी माँ चल तो सही ...मैंने भी धीरे बोला इस बार और तुम्हे दोबारा हर्ट करने का मौका ही नहीं दिया ..........
 पर क्या ठीक किया  था मैंने ? 

I do understand!!

I look at him in pain, And lightly smile again. He might think I jest, His sorrows, wounds, unrest. I've fought battles on my own, Survi...