दरकती  हुई
सांसे  ख़ामोशी  से 
कह  रही-
वो  एक 
उम्र  भी  कम 
था  तेरी  साथ 
को  ,
औ आज  जब 
हम  मौन  में  , तुझे  कह  भी 
नहीं  पा रहे 
की  एक और 
उम्र  जीने  की 
ख्वाहिश  है  तेरे 
संग .
तो तू पास में ही
हाथ को थामे,सिसकिया ले रहा !
और कह रहा खुदा
कुछ पल,"इसे और देदे ".
यही  एहसास 
है जो आज ना कह कर भी , बहुत कुछ कह रही !
 इसी की कमी थी जो आज मैं ,कुछ  कहने सुनने  के काबिल भी नहीं .
प्रज्ञा ठाकुर  
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