Sunday, 13 August 2017

वो एक नज़र तेरा !

वैसे तो पिछले कई दिनों से मैंने तुम्हे नोटिस किया था ,की तुम छुप छुप कर देखते हो ,पर रंगे हाथो पकड़ने की ख्वाहिश दिल में थी ,फिर क्या था एक बगल में मेरे ही बेंच पर बैठी क्लासमेट ने कहा की वो तुझे देख रहा है ,देख-देख ,और मैं मुस्कुरा कर मुँह फेर कर बैठ गयी , अरे बस कुछ पल के लिए ही मुँह फेरा , कहा मन लग रहा था उस सब्जेक्ट को पढ़ने में बार बार कोई इनर वॉइस कह रहा था देखने दे क्या हो गया !
बस मैं पलट गयी ,और तुम पकडे गए ,तुम मुझे ही देख रहे थे , तुम्हारी नजरें नीची हो गयी और मेरे हाथो की पेंसिल गिर गयी जमीन पर , मैं झुकी पेंसिल उठाने और फिर से तुमने देखा !
मुझे कैसे पता? अरे क्यूंकि मैंने भी तो देखा की क्या तुम देख रहे हो .

'यूँ ही चलते आँखों के सिलसिले , ना जाने कब दिल तक उतर गए
ख्वाब ही होगा जागती आँखों का , हकीकत में तो हम-तुम कितने बदल गए "
प्रज्ञा ठाकुर
#दिल से

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