Monday, 14 August 2017

एक ख्याल

बहुत दिनों से एक ख्याल है मन में सोचा खुद से कह दू.हाँ सही सुना अपने आप से कुछ कहना था . मैं दुसरो को सच या झूठ बड़ी या छोटी बातें आसानी से कह जाती हूँ ,बेबाक तरीके से पर खुद से कुछ बातें करने में बहुत हिम्मत जुटानी पड़ती है . खुद को कही भी गलत ठहराना हो या किसी सचाई से रूबरू जो की तकलीफ देती हो तो कैसे करवाए ,मैं अक्सर कविता कहानियों के जरिये कह बहुत कुछ देती हूँ लेकिन खुद को क्यों नहीं समझा पाती क्यूंकि शायद उसी मुकाम पर मेरा एक लेखिका होने का दायरा छोटा होता है और इंसान होने के दायरे में सिमट जाता है और फिर वो इंसान सोचता है ,की बातों से कुछ नहीं होता या फिर ऐसा तो सबके साथ होता है ना ,आज का यह पोस्ट सबके साथ होने वाली मानसिकता पर है .
मैं नहीं मानती की सबके साथ एक ही चीज़े एक ही बाते होती है . मुझे मालूम है की कुदरत भी सबके साथ अलग अलग ही बर्ताव करती है अगर लोग कुदरत को अलग अलग तरीको से चुनौती देते है.जैसे मैं दिखती हूँ वैसे आप नहीं दिखते,जैसा मैं सोचती हूँ आपकी सोच भी उससे अलग हो सकती है अगर आप दुसरो की सोच फॉलो ना करे तो ,और ऐसा ही अलग अलग हम सबके जीवन का लक्ष्ये है. अक्सर सुनती हूँ ,ये फेल हो गया तो बड़ी बात क्या है और भी हुए है, ये डॉक्टर नहीं बन सकता क्युंकि इसके घर में कोई पढ़ा लिखा नहीं ये पढ़ाई में कमजोर है तो ये खिलाडी बनेगा या सिनेमा में जायेगा . सड़क पर तमाशबीन बने लोग किसी को सहारा नहीं देते हॉस्पिटल ले जाने में सोचते है .आवाज़ नहीं उठाते क्युंकि वो एक समाज का हिस्सा है जिसमे लोगो को दुसरो के पचड़े में नहीं पड़ना, कहने को लोग दुसरो के मदद , अनजान लोगो को सहारा देने में डरते है और वही अनजान अगर आपका पडोसी हो तो दिन रात उसी के ज़िंदगी में झांक ताक करने लगते है . ये सच है की ज्यादातर बातें जो हम दुसरो को मना करते है रोकते है दबाते है आवाज़ बंद कर देते है अपनी खुद की ज़िंदगी में करते है और उन् चीज़ो के जिम्मेदार होते है. मेरा कहना है सिर्फ भारत ही ऐसा देश क्यों है जहाँ ढेरो रायचंद है .अगर वो ध्यानचंद और ज्ञानचंद या मौनचंद हो जाये तो कितना अच्छा और सुख शांति का वातावरण होगा . अगली बार मैं जब किसी से मिलूंगी तो उसे मुफ्त की सलाह मांगने पर भी नहीं दूंगी .मेरा वक़्त बर्बाद होता है . मैं उसे बस इतना कहूँगी की हो सके तो २-३ दिन बंद कमरे में खुद के साथ वक़्त बिताओ और खुद से जवाब मांगो क्या पता कितने सालो से तुम दुसरो को ही देखने समझने और दुसरो के बारे में सोचने में इतना उलझ गए हो की अपने आप को पहचानना ही भूल गए .शायद खुद में थोड़ी सुधार लायी जाये तो दुसरो से शिकायत काम होंगी

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