लाल और नीली नदी©
लब- लब -लब, लत -पत ,झर- झर बहती है नदी 'नीली' सी नदी है 'लाल' नदी, दोनों ही नदी समेटी, वो बाली वो विधवा वो बूढ़ी वो बच्ची वो युवती एक दुल्हन भी ! लाल नदी रोती है सब रोते है हाय हाय करते है भला क्यों रोते है? कुछ कहती है दोनों नदी इंगित करती है तेरा नाश मनुज कायर तेरी बिपत्ति वो नीली नदी बचपन से बहती है बुढ़ापे तक बहती है सदियों से बहती रहती है है साफ़ नदी ऊपर की नदी कुछ पाक नदी हर ज़ख्म बयां करती है - जो है लाल नदी भीतर की नदी जिसका बहना दुर्भाग्य को दर्शाता सब सहती है लत -पत, लत- पत ख़ून से लतपत, चुप रहती है फिर एक गहरा सन्नाटा - सब सो जाते है वो भी सो जाती है ! ©प्रज्ञा ठाकुर