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Showing posts from December 16, 2018

मेरे शहर अज़ीज़ ! ©

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अरे मेरे खुशनुमा शहर मेरी दिलरुबा वादियां मेरे महबूब हवाएं तुम उदास हो, की हम है कोई कुछ तो बतलाये यादें तमाम छोड़ गए थे तुम्हें तन्हा कहां छोड़ा ? हम जो नहीं थे शहर में तो भी रिश्ता कहाँ तोड़ा? कहों ख़फा हो क्या ? या किसी और से दिल लगा लिए हम यहाँ के पहले से है तुम 'उसे' तो नहीं अपना लिए की अबकी जो हवाएं चल रही जाने कुछ उदास सी है अपना शहर है की नहीं ? कुछ अनकही प्यास सी है देखो अगर तुमने उसको अपना मान लिया तो कहते है बगावत होगी गर जो मुझे भूल कर उसके रंग में हो तो खुदा कसम क़यामत होगी वो पास है तेरे ए मेरे शहरे अज़ीज़ मगर तू तो मेरा है दिल ए रक़ीब उसके रंग में बहना मत वो बेवफा है तुम बस मेरे हो उससे मुझे शिकवा-गिला है मैं आयी हूँ तो मुझसे ज़िंदगी ले लो उसका क्या है वो तो जिद्दी सिरफिरा है मैं तुमसे दूर होकर भी तुम्हें भूलती नहीं हूँ वो तो दिलफ़रेब कल मेरा था आज तेरा है! ©प्रज्ञा ठाकुर

आज कि नारी का योग्य स्वरूप ।©

मैं सती हूं पर असीम ऊर्जा का स्रोत नहीं, मैं पराजित हूं जो पति के सम्मान के लिए अपनी क्रोध को नियंत्रित ना कर पाने पर आत्मदाह कर लेती है और सीता हूं घूम-घूम कर अपने हर बात की सफाई देती है लोगों को की इसका ये अर्थ है आपने गलत समझा माने अग्नि परीक्षा तो मेरा दूसरा रोज़गार है  मैं राधा हूं जिसे रुक्मणि बनने की ख्वाहिश थी पर भगवान बना दिया गया और गंगा हां , गंगा का अपना कोई अस्तित्व नहीं वो तो पावन हीं है ताकि लोगों के कचरे और पाप धोएं तो मुझे ना अब इन सब से अलग मेरा अस्तित्व और मेरी खुशी नज़र आती है जहां मैं सूर्पनखा हूं मेरा भाई सदैव मेरे लिए तत्पर है मैं पूतना हूं जो मासूम से बाबन देख पिघल गई लेकिन जब उसे मालूम पड़ा कि जिसे वो पुत्र बना कर दूध पिलाना चाहती थी वो विश के लायक है तो उसे दूध में जहर घोल पिला दिया और मैं सुभद्रा हूं जो अर्जुन को लेकर भाग गई द्रौपदी नहीं जो लोक लाज के आगे शहीद हो गई इतना अपमान सहा । मैं कलयुग में हूं और यहां के उसूल मैंने खुद बनाए है हां मैं रुक्मणि और सत्यभामा हूं। राधा , मीरा , सीता ये सब मेरे भीतर है पर बाहर इनकी कोई आवश्यकता नहीं बाहर तो मैं सिर्फ काल