आज कि नारी का योग्य स्वरूप ।©

मैं सती हूं पर असीम ऊर्जा का स्रोत नहीं,
मैं पराजित हूं जो पति के सम्मान के लिए अपनी क्रोध को नियंत्रित ना कर पाने पर आत्मदाह कर लेती है
और सीता हूं घूम-घूम कर अपने हर बात की सफाई देती है लोगों को की इसका ये अर्थ है आपने गलत समझा माने अग्नि परीक्षा तो मेरा दूसरा रोज़गार है 
मैं राधा हूं जिसे रुक्मणि बनने की ख्वाहिश थी पर भगवान बना दिया गया
और गंगा हां , गंगा का अपना कोई अस्तित्व नहीं वो तो पावन हीं है ताकि लोगों के कचरे और पाप धोएं
तो मुझे ना अब इन सब से अलग मेरा अस्तित्व और मेरी खुशी नज़र आती है
जहां मैं सूर्पनखा हूं मेरा भाई सदैव मेरे लिए तत्पर है
मैं पूतना हूं जो मासूम से बाबन देख पिघल गई लेकिन जब उसे मालूम पड़ा कि जिसे वो पुत्र बना कर दूध पिलाना चाहती थी वो विश के लायक है तो उसे दूध में जहर घोल पिला दिया
और मैं सुभद्रा हूं जो अर्जुन को लेकर भाग गई
द्रौपदी नहीं जो लोक लाज के आगे शहीद हो गई इतना अपमान सहा ।
मैं कलयुग में हूं और यहां के उसूल मैंने खुद बनाए है
हां मैं रुक्मणि और सत्यभामा हूं।
राधा , मीरा , सीता ये सब मेरे भीतर है पर बाहर इनकी कोई आवश्यकता नहीं
बाहर तो मैं सिर्फ काली हूं और मेरा सम्पूर्ण जीवन हीं काली की भांति क्रूर है जहां शिव को स्वामी नहीं पुत्र बन कर आना पड़ता है मुझे शांत करने ।
अर्थात प्रेम के लिए में सदैव प्रेम हूं और शासन , क्रूरता और तानाशाही के लिए सदैव मैं विकराल हूं ।
उम्मीद है मेरे जीवन में राम, कृष्ण नहीं शिव आए ।
नहीं तो जालंधर भी ठीक है ।
©प्रज्ञा ठाकुर

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

पुरानी प्रेमिका

उसकी शादी और आख़िरी ख्वाहिश

Aye zindagi !