तुम एक कविता हो !

तुम एक कविता हो
एक उदास कविता
और मैं हूं एक पाठिका
मैं जब जब तुम्हें पढ़ती हूं
मुझे उदासियां घेर लेती है
मैं उदास रहना चाहती हूं
तुम्हें बार बार पढ़ना चाहती हूं
तब तक, जब तक की
तुम्हारी उदासियां मेरे कानों में तरन्नुम बन जाए
और मैं मचल उठूं उसे गुनगुनाने को
फिर एक सुंदर गीत बने
 मैं उसे गाउं
वो लोगों को लगे कोई उदास गीत
पर सभी लोग खूब सुने
सुन कर याद करके गुनगुनाए
फिर मैं,तुम,और सब
हमलोग एक हो जाएं
तुम्हारी सी उदास कविता की तरह.

प्रज्ञा ठाकुर

Comments

Popular posts from this blog

उसकी शादी और आख़िरी ख्वाहिश

I do understand!!