मेरे शहर अज़ीज़ ! ©


अरे मेरे खुशनुमा शहर
मेरी दिलरुबा वादियां
मेरे महबूब हवाएं
तुम उदास हो, की हम है
कोई कुछ तो बतलाये
यादें तमाम छोड़ गए थे
तुम्हें तन्हा कहां छोड़ा ?
हम जो नहीं थे शहर में
तो भी रिश्ता कहाँ तोड़ा?
कहों ख़फा हो क्या ?
या किसी और से दिल लगा लिए
हम यहाँ के पहले से है
तुम 'उसे' तो नहीं अपना लिए
की अबकी जो हवाएं चल रही
जाने कुछ उदास सी है
अपना शहर है की नहीं ?
कुछ अनकही प्यास सी है
देखो अगर तुमने उसको अपना मान लिया
तो कहते है बगावत होगी
गर जो मुझे भूल कर उसके रंग में हो
तो खुदा कसम क़यामत होगी
वो पास है तेरे ए मेरे शहरे अज़ीज़
मगर तू तो मेरा है दिल ए रक़ीब
उसके रंग में बहना मत वो बेवफा है
तुम बस मेरे हो उससे मुझे शिकवा-गिला है
मैं आयी हूँ तो मुझसे ज़िंदगी ले लो
उसका क्या है वो तो जिद्दी सिरफिरा है
मैं तुमसे दूर होकर भी तुम्हें भूलती नहीं हूँ
वो तो दिलफ़रेब कल मेरा था आज तेरा है!

©प्रज्ञा ठाकुर

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