Thursday, 7 September 2017

मन वाबला !©

मन बावला उड़ता फिरे
कभी दिल जिधर ,कभी दर -बदर
कभी किसी पुराने मोड़ पर
कभी इस शहर, कभी उस शहर
जाने कैसा है ये हमसफ़र
कभी किसी पुरानी याद में
खोया-खोया सा रहे ,
कभी किसी पुरानी बात में
उलझा उलझा सा फिरे
कभी आने वाले पल की
फ़िक्र में , मायूस सा
ज़िंदगी की पहेलियों में
जकड़ा हुआ भटका सा
एक मैं मुसाफिर हूँ -
एक है मुसाफिर मन मेरा !
मन वाबला , मन बावला!!!



©प्रज्ञा ठाकुर

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