Thursday, 23 March 2017

फर्क ( तेरे-मेरे याद में)

समेट लेती हूँ  ख्वाब  का  दरिया
इन्  आँखों  में  ,
जैसे  तेरे  याद  का  दरिया
मेरे  हर  बातों  में ,
ख़ुशी तो  पलको  से  भी  झलकती  है
गम  होटों  से भी  बयां  होता  है
बस  फर्क  इतना  है  की ,
मैं  तुझे  बस ' इक  याद ' सी  लगती  हूँ
तू  मेरी  हर  याद में   रहता है

प्रज्ञा  ठाकुर  @PT

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