हालात- ए - इश्क़ 
एक कसक है जो ठंडी नहीं  होती 
कुछ उमस है जो भीनी- भीनी  सुलगती 
बज़्म में लोग भी शामिल है ऐसे ,
किनारे मिलते नहीं नदी के ,जिन्हें आदत है कहने की ,
झोंका है हवा का वक़्त- ए -काफ़िर 
दगाबाज़ दरियाँ जो डूबकर उभरने नहीं देती 
अमावस जैसी रात बीच -बीच में ,
हर पहर आती है 
इश्क़ उस बेवा से हालात है जो 
ख़ुद मर कर भी सवरने नहीं देती 
शायरी कविता गीत ग़ज़ल ,
सब मेरे किस्से ही तो हैं
लोगों से दाद जो मिलती है मुझे ,
मेरी आह उसे मुझ तक पहुँचने नहीं देती!!
 ©प्रज्ञा ठाकुर
 
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