Wednesday, 12 December 2018

तुम्हारी वेदना


सोचो ना कितना प्यार है मुझमें
जहां भी तुम्हारा जिक्र होता है
मैं खामोशी से सुनती हूं
और कोई शिकायत भी नहीं करती
जानती हूं कि वो मेरा दिल दुखाते है
तुम्हारी बातें कर के
लेकिन मुझे तुम्हारे नाम में
खो जाने की आदत है
मैं उनकी बातें नहीं सुनती
बस तुम्हारा जिक्र सुनकर खो जाती हूं
उन्हीं लम्हों में जब तुम कुछ कहते थे
मैं कुछ कहती थी
कोई किरदार बुनती थी मैं
तुम किस्से गढ़ते थे
पागल हो तुम, तुमने कभी
जुबान से आंखें बयान हीं नहीं की
मैं बुझती गई तुम्हारी वेदना
और सीलती गई ख़ुद के ज़ख्म
तुम खुश तो हो ना?
तुम्हारा जिक्र यूं बेवजह नहीं होता.©

प्रज्ञा ठाकुर

3 comments:

I do understand!!

I look at him in pain, And lightly smile again. He might think I jest, His sorrows, wounds, unrest. I've fought battles on my own, Survi...