तुम्हारी वेदना


सोचो ना कितना प्यार है मुझमें
जहां भी तुम्हारा जिक्र होता है
मैं खामोशी से सुनती हूं
और कोई शिकायत भी नहीं करती
जानती हूं कि वो मेरा दिल दुखाते है
तुम्हारी बातें कर के
लेकिन मुझे तुम्हारे नाम में
खो जाने की आदत है
मैं उनकी बातें नहीं सुनती
बस तुम्हारा जिक्र सुनकर खो जाती हूं
उन्हीं लम्हों में जब तुम कुछ कहते थे
मैं कुछ कहती थी
कोई किरदार बुनती थी मैं
तुम किस्से गढ़ते थे
पागल हो तुम, तुमने कभी
जुबान से आंखें बयान हीं नहीं की
मैं बुझती गई तुम्हारी वेदना
और सीलती गई ख़ुद के ज़ख्म
तुम खुश तो हो ना?
तुम्हारा जिक्र यूं बेवजह नहीं होता.©

प्रज्ञा ठाकुर

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