निल-गगन के चाँद मेरे !©
अनगिनत बार यूँ ही लौटी
ख़ाली हाथ देख बस गगन की ओर ,
तुम बहुत दूर थे
और चमक रहे थे ,
मैं अमावस की रात
तुमको ग्रहण से दूर रखके
लौट आयी इस कदर
वापस उस जगह से ,
जहाँ बस ख़ाब में जाती हूँ,
मिलने तुमसे अक्सर !
ज़िंदगी है यूँ तो मेरी स्याह रातें
और तुम हो ,निल-गगन के चाँद मेरे
कई बार कोशिश भी की
तुम तक पहुंच पाने की
पर मेरी किस्मत में,
तुम शामिल नहीं हो
हार जाती हूँ मैं अक्सर
सोचकर ये ,दूर हो तुम दूर !
बहुत ही दूर हमसे ,
और ये दुरी धरा से ,
गगन तलक की ही नहीं ,
ये दुरी है इस दिल से ,
उस दिल के दरमियाँ भी ,
ज़िंदगी है यूँ तो मेरी ,स्याह रातें
और तुम हो ,निल -गगन के चाँद मेरे !
ख़ाली हाथ देख बस गगन की ओर ,
तुम बहुत दूर थे
और चमक रहे थे ,
मैं अमावस की रात
तुमको ग्रहण से दूर रखके
लौट आयी इस कदर
वापस उस जगह से ,
जहाँ बस ख़ाब में जाती हूँ,
मिलने तुमसे अक्सर !
ज़िंदगी है यूँ तो मेरी स्याह रातें
और तुम हो ,निल-गगन के चाँद मेरे
कई बार कोशिश भी की
तुम तक पहुंच पाने की
पर मेरी किस्मत में,
तुम शामिल नहीं हो
हार जाती हूँ मैं अक्सर
सोचकर ये ,दूर हो तुम दूर !
बहुत ही दूर हमसे ,
और ये दुरी धरा से ,
गगन तलक की ही नहीं ,
ये दुरी है इस दिल से ,
उस दिल के दरमियाँ भी ,
ज़िंदगी है यूँ तो मेरी ,स्याह रातें
और तुम हो ,निल -गगन के चाँद मेरे !
©प्रज्ञा ठाकुर
Comments
Post a Comment