वो दिन बचपन के,©

वो दिन बचपन के,
किलकारी भरी- आँगन की यादें समेटे
वो दिन भर पंछी की तरह चहचहाना
खेलना,कूदना, मिट्टी में कपड़े भिगाना
थक-कर कहीं भी सो जाना
बंद हो जाती जब अपनी चहचहाहट
माँ का ह्रदय लगता जोड़ो से धड़कनें
घर के हर कोने में हमें ढूंढती वो
जो मिलते नहीं तो लगती सिसकने
ढूंढकर देखती, मिट्टी में कपड़े भिगाकर
खोये हैं कहीं किसी सपने में जाकर
प्यार से ले गोद में हमें चूमती
मानो हीरा मिला हो ऐसे झूमती
हमे लिटाकर खुद भी सो जाती वो
हमारे हीं सपनों में खो जाती वो!

©प्रज्ञा ठाकुर

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