Sunday, 13 November 2022

Mahadev ke 'premi'

सो हमने सोचा नागपुर से दिल लगाया जाये ! <3

बेहद ख़ूबसूरत रास्तें  थें !
वह जो कभी ख़त्म ना हो और मंजिल को ना हीं ले जाये तो बेहतर, बारिश के मौसम में तो क्या गजब की हरियाली होती है, वही मिले तुम सीधे सादे से महादेव के भक्त !
समस्या ये रही की हम ठेठ हिंदी और तुम उतने ही ठेठ मराठी , और अंग्रेजी तो गजब की तंग की ना बोले तो ही ठीक है. पर जो एक बात दोनों में कॉमन थी हमारी इस्माइली -जी हाँ दोनों मुस्कुराये गजब थे, एकदूसरे पे नज़र पड़ते हीं.
वो क्या है ना तुम छुप-छुप कर देखते रहे बस स्टैंड पे खड़े मेरी बस की तरफ और जब बस की खिड़की से हमने देखा तुम शरमा गए !
वो अंदाज़ भी क्या खूब होता है जनाब जब कोई लड़का शरमा जाये, लड़की के शर्माने की अदा से बड़ी क़यामत है, हमने तो मन पढ़ लिया लड़का गजब का शरीफ था !
बस फिर बस रुकी हम उतरे तुम धीरे से पास आये चल कर और कहा "कुठे जायच आहे ?
और मैं दोबारा मुस्कुरा दी 'ये नहीं कहना चाहती थी की मुझे मराठी नहीं आती क्यूंकि नहीं आती तो क्या हुआ  मुझे तुम समझ आते हो.
तुमने फिर पूछा टूटी हिंदी जबान 'मराठी ...हिंदी ' ?
मैंने हिंदी कहा ! बस चल दी ...दोनों मुस्कुराये 'बस बात इतनी ही हुए थी, हाँ वो महादेव के भक्त क्यूंकि तुम्हारे माथे पर वो तिलक देखा जो नासिक के त्रयंबकेश्वर में सबके सिर पे लगा देखा था मैंने .. मैं एक यात्रा पे थी ना ....

प्रज्ञा

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