मुकम्मल ईश्क
मुक़्क़मल इश्क़ !<3
चलो एक पूरी सी कहानी लिखते है दो अधूरे किरदार मिल कर !
तुम्हें बस आना है मेरी ज़िंदगी में बस एक गुलाब लेकर और ज़माने से छुपते-छुपाते ,किसी किताब में रखकर एक अधूरी चिठ्ठी के साथ जिस पर, कुछ बेमतलब की शायरी लिखीं हो जिसका मेरे वज़ूद से कोई लेना देना ना हो,लेकिन फिर भी मैं पढ़ कर मुस्कुरा दूँ और शरमा कर सोचूँ की तुमने मेरे लिए हीं लिखीं है ! हाँ वो और बात है की मुझे पता होगा की तुम शायरी नहीं लिखते!
फिर उस गुलाब को चुम कर मैं अपनी किसी ख़ास डायरी में छुपा लुंगी जहाँ घर वालों की सालो-साल नज़र ना पड़े.
फिर मन ही मन मैं तुम्हें बहुत चाहने लगु और दीवानगी का आलम इस कदर हो की हर मंगल वार मंदिर जाऊ और बाल-ब्रह्मचारि हनुमान जी से तुम्हें मांगू उन्हें बूंदी के लडडू चढ़ा कर ,और सारे सोमवारी करुँ की तुम ही मेरे जीवन साथी बनो पर तुमसे कुछ ना बोलूं.
तुम रोज़-रोज़ यूँ हीं मेरी गली के चक्कर लगाना और कभी-कभी चोरी से मुझे खिड़की से झांकते पकड़ लेना .ऐसे ही मुझे मेरी दुआं कबूल सी लगने लगे और तुम्हें भी तुम्हारे बिना पूछें हुए सवाल का जवाब हाँ में मिल जाये !
बस रूहानी इश्क़ हो ,दोनों में हो गज़ब का ,इशारों के रिश्ते हों , मुस्कुराहटों से ज़ाहिर हों .
ऐसा अधूरा सा प्रेम हों की एक दिन हम किसी अजनबी शहर चले जाये और तुम भी गली के चक्कर लगा कर थक जाओ तो कोई पड़ोस वाली नफीसा तुम्हें कह दें की वो मकान खाली कर के शहर छोड़ कर चली गयी उसे तुम्हारे दीवानेपन पे तरस आ जाये .बहुत होगा तो तुम उसे कह देना की मैं लौटूं तो तुम्हें बता दें और अपना नंबर छोड़ आना उसके पास कभी ना आने वाले कॉल के लिए और कहीं खो जाना दुनिया की भीड़ में ,और बेगाने शहर में हम भी कुछ दिन तुम्हारी याद में तड़पे और फिर नयी दुनियाँ बना लें अपनी .
इश्क़ भी मुकम्मल होगा , हाँ किरदार अधूरे होंगे पर कहानी पूरी होगी!
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