रामेश्वरम
रामेश्वरम की वो शीतल गलियां
मुझे मालूम नहीं की कब से,
मुझे उन् गलियों से प्यार हुआ
वहां की शांत सड़के,
थोड़ी दूर का वो भव्य सुनहरा मंदिर,
वही पास में वो शांत समुन्दर ,
वहीं कहीं थोड़ी दूर
एक महान मातृ भक्त की,
पवित्र स्मृति स्थल
जहाँ अमर 'कलाम',
सुंदर नींद में सोये है,
कितना सुकून है वहां
वहीं 'दिनकर' जी ने,
अपने जीवन का आखिरी
हिसाब किताब किया था
स्वयं नारायण से,
वहां बहुत पवित्रता है
मुझे उसी जगह से अगाध प्रेम है
जाने कौन सा रिश्ता है की
जीवन कहीं भी बिते
आखिरी छन आखिरी श्वांस
रामेश्वरम की गोद में हीं हो !
कभी-कभी प्रेम ऐसा भी होता है
जो किसी जगह की,
मिट्टी और हवा से हो
शायद इसी कारन बड़े-बुजुर्ग
आखिरी लम्हा अपने मिट्टी में हीं
गुजारना चाहते है !
प्रज्ञा
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