Saturday, 23 March 2024

I do understand!!


I look at him in pain,
And lightly smile again.
He might think I jest,
His sorrows, wounds, unrest.
I've fought battles on my own,
Survived, and I have grown.
I smiled not to belittle,
But to say, "I understand a little."
His pain, I comprehend,
His wounds, I've had to mend.
His hopes, dreams so grand,
I've faced them, I understand.
I smiled, not in jest,
But to show, I've faced the test.
I've lived for myself, fought the strife,
In constant struggle, I've built my life.
I speak the truth, I want you to see,
I'm familiar with your agony.
He may know me by name,
I assure you, our struggles are the same.
I speak the truth, no pretense,
I understand your pain, hence.
I'm acquainted with your story,
In empathy, I share my glory.

तुम एक कविता हो !

तुम एक कविता हो
एक उदास कविता
और मैं हूं एक पाठिका
मैं जब जब तुम्हें पढ़ती हूं
मुझे उदासियां घेर लेती है
मैं उदास रहना चाहती हूं
तुम्हें बार बार पढ़ना चाहती हूं
तब तक, जब तक की
तुम्हारी उदासियां मेरे कानों में तरन्नुम बन जाए
और मैं मचल उठूं उसे गुनगुनाने को
फिर एक सुंदर गीत बने
 मैं उसे गाउं
वो लोगों को लगे कोई उदास गीत
पर सभी लोग खूब सुने
सुन कर याद करके गुनगुनाए
फिर मैं,तुम,और सब
हमलोग एक हो जाएं
तुम्हारी सी उदास कविता की तरह.

प्रज्ञा ठाकुर

Monday, 24 July 2023

उसकी शादी और आख़िरी ख्वाहिश

अपनी शादी 
कुछ ठीक से याद नहीं पर शादी की खरीदारी करनी थी 
नई साड़ियां, गहने, चप्पल और ढ़ेर सारा मेकअप का सामान, मुझे अचानक लहंगे की दुकान पर ख़्याल आया कि लहंगा लाल और गुलाबी नहीं लेना, मेकअप मैं लगाती नहीं,सोने के गहने का क्या करेंगे मुझे तो माता सीता जैसे वनवासी रूप की आदत है जबतक सहेलियां हज़ार दफ़े बोल कर लड़ कर मुझे ख़ुद ना तयार कर दे,शादी अगर थोड़ी सादगी वाली होती कम भीड़ पर घरवाले कहां सुनने वाले थे,मैं ही बेटा मैं हीं बेटी मैं हीं बड़े नाम वाली बहुत लोग आने वाले थे और मुझसे बात करते मुबारक बाद दुआएं और एक पल अकेला नहीं मिलने वाला था . खैर 'होईहे वोही जो राम रची राखा' तो शादी का दिन था बहुत सारे शोर और तमाशो के बाद बारात दरवाजे पर थी और मैं कमरे में सज धज कर अकेली गौरी पूजन में लीन, मां और ताई जी ने कहा कि कोई इस कमरे में नहीं आएगा दरवाजा बाहर से बंद कर रहें और कोई कितना भी आवाज़ लगाए बोलना मत , मां गौरी से मांग लो आख़िरी बार जो तुम्हें चाहिए , ऐसा कहकर मां अचानक उदास हो गई और मेरे सिर पर हाथ फेर गईं, मैं जानती थी कि मां को पता है क्या माँगूंगी, पर आज नहीं ये आख़िरी दफ़ा आख़िरी मौका मैं व्यर्थ नहीं करना चाहती मैंने मांगा इस बार जो मैंने मांगा वो मांगना कम और किसी को देना ज्यादा था, करीब 2 घण्टे मैंने बस तुम्हीं को सोचा तुमसे ढ़ेर सारी बात हुई, फ़ोन हाथ में लिया और नंबर घुमाया तुम शायद मेरे ख़्याल में थे, और तुमने मुझे बस इतना कहा खुश रहना मैं आज भी तुम्हें इस दुनियां में सबसे ज्यादा मानता हूं और रोती हुई अच्छी नहीं दिखती मेकअप ख़राब कर लोगी फ़िर दुनियां की सबसे खूबसूरत दुल्हन कैसे दिखोगी? वो चुड़ैल जीत गयी तो(दरसल अक्सर हीं मैं उसे ताने देती थी कोई भी चुड़ैल आए सबसे खूबसूरत तो मैं हीं दिखूंगी) ज़रा सी हँसी दो पल की चेहरे पर आयी तो थी मगर फ़िर  फ़ोन बिना काटे मैं फफक पड़ी , बाहर जो मेरे लिए शेहरा बांधे खड़ा था वो दुनियां का सबसे समझदार इंसान था सबसे बेहतर और वो आजतक मुझे इतनी आसानी से पढ़ नहीं पाया !



नीति, ये कहानी सुनाते-सुनाते अपने नाती- पोतों को मुस्कुराती है आज अपनी साठवीं वर्षगांठ पर 
और कहती हैं प्यार बहुत खूबसूरत एहसास है, जो मुझे न होता तो आज मैं तुम लोगों के साथ कैसे होती ?
         

Wednesday, 12 April 2023

पुरानी प्रेमिका

कुछ भी नहीं जिया मैंने अभी कितना कुछ तो बाकी है
गांव में जा कर किसी प्रेमी संग पुराने स्कूटर पर बैठना था
जो बार बार बंद हो जाती हो और रोक कर उसे टेढ़ा करके फिर स्टार्ट करते हो
मुझे उसके साथ किसी गांव का मेला देखना था 
लेने थे मुझे उसकी पसंद की बालियां और मेरे पसंद के खट्टे बेर उसे खिलाने थे
दो चोटी वाली छोटी लड़की स्कूल भेजनी थी लाल रिबन के साथ 
और लड़के की शिकायत सुननी थी मुझे पड़ोस वाली भाभी से
गांव से दूर देश तक ले कर जाना था उन्हें साथ
दिखाना था दोनो हीं जगहों का जीवन और बारहों मास
मुझे छुप छुप कर देखना था सिनेमा सारे घरवालों से
और पीनी थी रोड वाली कुल्हड़ की चाय
मुझे बहुत सारी यात्राओं पर कोई साथ भी चाहिए था 
क्योंकि वो यात्राएं मैंने अकेले नहीं की किसी की इंतजार में
मुझे मुफ्त में बच्चों को पढ़ाना था उनके लिए घर से खाना ले जाना था
किसी को अकेला नहीं देखना था ना छोड़ना था
मैं खुद को अकेला पा कर देखती हूं
कितना कुछ करना था जो इस जीवन में छूट गया
ढलती उमर सपने छोटे करती गई 
मैं गांव और शहर से दूर बस एक कमरे की होती गई.

प्रज्ञा

Sunday, 13 November 2022

Aye zindagi !

Aye zindgi !
Mil kabhi achanak se yun hi
Ki mujhe teri kami si lag rhi
Kal ki aayi khushi ko keh de thehar jane ko
Aaj ki barish se keh de haule barse jara
Koyal ki kuk ki kami si lag rahi aaj 
Garjte badalo ne unhe rok liya hai
Zara waqt mile to aana chutti lekar
Bahut si baate karni hai tumse milkar
Sunhre se mausam halki barish ,halka dhoop khila ho
Hawaye jo tez hai wo haule haule chal rahi ho
Meri pyari koyal jab kukne lagi ho
Aur aasman saaf neela ho ,bina kisi kale badal ke 
Tab milna aur chai ki pyali lekar 
Yahi balcony me baithkar guftagu karenge
Mujhe intzaar rahega tera aana jarur
Bahut kuchh hai kehne ko
Par adhure pan ki adat hai mere kahaniyo ko bhi
Jaisi adhuri si hai zindgi meri !©



रामेश्वरम

रामेश्वरम की वो शीतल गलियां 
मुझे मालूम नहीं की कब से, 
मुझे उन् गलियों से प्यार हुआ 
वहां की शांत सड़के,
थोड़ी दूर का वो भव्य सुनहरा मंदिर,
वही पास में वो शांत समुन्दर ,
वहीं कहीं थोड़ी दूर 
एक महान मातृ भक्त की,
पवित्र स्मृति स्थल 
जहाँ अमर 'कलाम', 
सुंदर नींद में सोये है,
कितना सुकून है वहां 
वहीं 'दिनकर' जी ने,
अपने जीवन का आखिरी 
हिसाब किताब किया था 
स्वयं नारायण से,
वहां बहुत पवित्रता है 
मुझे उसी जगह से अगाध प्रेम है 
जाने कौन सा रिश्ता है की
जीवन कहीं भी बिते 
आखिरी छन आखिरी श्वांस
रामेश्वरम की गोद में हीं हो !
कभी-कभी प्रेम ऐसा भी होता है 
जो किसी जगह की,
मिट्टी और हवा से हो
शायद इसी कारन बड़े-बुजुर्ग
आखिरी लम्हा अपने मिट्टी में हीं
गुजारना चाहते है !   

प्रज्ञा

#yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqtales #love #life #yqhindi #pragyathakur 

Mahadev ke 'premi'

सो हमने सोचा नागपुर से दिल लगाया जाये ! <3

बेहद ख़ूबसूरत रास्तें  थें !
वह जो कभी ख़त्म ना हो और मंजिल को ना हीं ले जाये तो बेहतर, बारिश के मौसम में तो क्या गजब की हरियाली होती है, वही मिले तुम सीधे सादे से महादेव के भक्त !
समस्या ये रही की हम ठेठ हिंदी और तुम उतने ही ठेठ मराठी , और अंग्रेजी तो गजब की तंग की ना बोले तो ही ठीक है. पर जो एक बात दोनों में कॉमन थी हमारी इस्माइली -जी हाँ दोनों मुस्कुराये गजब थे, एकदूसरे पे नज़र पड़ते हीं.
वो क्या है ना तुम छुप-छुप कर देखते रहे बस स्टैंड पे खड़े मेरी बस की तरफ और जब बस की खिड़की से हमने देखा तुम शरमा गए !
वो अंदाज़ भी क्या खूब होता है जनाब जब कोई लड़का शरमा जाये, लड़की के शर्माने की अदा से बड़ी क़यामत है, हमने तो मन पढ़ लिया लड़का गजब का शरीफ था !
बस फिर बस रुकी हम उतरे तुम धीरे से पास आये चल कर और कहा "कुठे जायच आहे ?
और मैं दोबारा मुस्कुरा दी 'ये नहीं कहना चाहती थी की मुझे मराठी नहीं आती क्यूंकि नहीं आती तो क्या हुआ  मुझे तुम समझ आते हो.
तुमने फिर पूछा टूटी हिंदी जबान 'मराठी ...हिंदी ' ?
मैंने हिंदी कहा ! बस चल दी ...दोनों मुस्कुराये 'बस बात इतनी ही हुए थी, हाँ वो महादेव के भक्त क्यूंकि तुम्हारे माथे पर वो तिलक देखा जो नासिक के त्रयंबकेश्वर में सबके सिर पे लगा देखा था मैंने .. मैं एक यात्रा पे थी ना ....

प्रज्ञा

I do understand!!

I look at him in pain, And lightly smile again. He might think I jest, His sorrows, wounds, unrest. I've fought battles on my own, Survi...