Monday, 24 July 2023

उसकी शादी और आख़िरी ख्वाहिश

अपनी शादी 
कुछ ठीक से याद नहीं पर शादी की खरीदारी करनी थी 
नई साड़ियां, गहने, चप्पल और ढ़ेर सारा मेकअप का सामान, मुझे अचानक लहंगे की दुकान पर ख़्याल आया कि लहंगा लाल और गुलाबी नहीं लेना, मेकअप मैं लगाती नहीं,सोने के गहने का क्या करेंगे मुझे तो माता सीता जैसे वनवासी रूप की आदत है जबतक सहेलियां हज़ार दफ़े बोल कर लड़ कर मुझे ख़ुद ना तयार कर दे,शादी अगर थोड़ी सादगी वाली होती कम भीड़ पर घरवाले कहां सुनने वाले थे,मैं ही बेटा मैं हीं बेटी मैं हीं बड़े नाम वाली बहुत लोग आने वाले थे और मुझसे बात करते मुबारक बाद दुआएं और एक पल अकेला नहीं मिलने वाला था . खैर 'होईहे वोही जो राम रची राखा' तो शादी का दिन था बहुत सारे शोर और तमाशो के बाद बारात दरवाजे पर थी और मैं कमरे में सज धज कर अकेली गौरी पूजन में लीन, मां और ताई जी ने कहा कि कोई इस कमरे में नहीं आएगा दरवाजा बाहर से बंद कर रहें और कोई कितना भी आवाज़ लगाए बोलना मत , मां गौरी से मांग लो आख़िरी बार जो तुम्हें चाहिए , ऐसा कहकर मां अचानक उदास हो गई और मेरे सिर पर हाथ फेर गईं, मैं जानती थी कि मां को पता है क्या माँगूंगी, पर आज नहीं ये आख़िरी दफ़ा आख़िरी मौका मैं व्यर्थ नहीं करना चाहती मैंने मांगा इस बार जो मैंने मांगा वो मांगना कम और किसी को देना ज्यादा था, करीब 2 घण्टे मैंने बस तुम्हीं को सोचा तुमसे ढ़ेर सारी बात हुई, फ़ोन हाथ में लिया और नंबर घुमाया तुम शायद मेरे ख़्याल में थे, और तुमने मुझे बस इतना कहा खुश रहना मैं आज भी तुम्हें इस दुनियां में सबसे ज्यादा मानता हूं और रोती हुई अच्छी नहीं दिखती मेकअप ख़राब कर लोगी फ़िर दुनियां की सबसे खूबसूरत दुल्हन कैसे दिखोगी? वो चुड़ैल जीत गयी तो(दरसल अक्सर हीं मैं उसे ताने देती थी कोई भी चुड़ैल आए सबसे खूबसूरत तो मैं हीं दिखूंगी) ज़रा सी हँसी दो पल की चेहरे पर आयी तो थी मगर फ़िर  फ़ोन बिना काटे मैं फफक पड़ी , बाहर जो मेरे लिए शेहरा बांधे खड़ा था वो दुनियां का सबसे समझदार इंसान था सबसे बेहतर और वो आजतक मुझे इतनी आसानी से पढ़ नहीं पाया !



नीति, ये कहानी सुनाते-सुनाते अपने नाती- पोतों को मुस्कुराती है आज अपनी साठवीं वर्षगांठ पर 
और कहती हैं प्यार बहुत खूबसूरत एहसास है, जो मुझे न होता तो आज मैं तुम लोगों के साथ कैसे होती ?
         

Wednesday, 12 April 2023

पुरानी प्रेमिका

कुछ भी नहीं जिया मैंने अभी कितना कुछ तो बाकी है
गांव में जा कर किसी प्रेमी संग पुराने स्कूटर पर बैठना था
जो बार बार बंद हो जाती हो और रोक कर उसे टेढ़ा करके फिर स्टार्ट करते हो
मुझे उसके साथ किसी गांव का मेला देखना था 
लेने थे मुझे उसकी पसंद की बालियां और मेरे पसंद के खट्टे बेर उसे खिलाने थे
दो चोटी वाली छोटी लड़की स्कूल भेजनी थी लाल रिबन के साथ 
और लड़के की शिकायत सुननी थी मुझे पड़ोस वाली भाभी से
गांव से दूर देश तक ले कर जाना था उन्हें साथ
दिखाना था दोनो हीं जगहों का जीवन और बारहों मास
मुझे छुप छुप कर देखना था सिनेमा सारे घरवालों से
और पीनी थी रोड वाली कुल्हड़ की चाय
मुझे बहुत सारी यात्राओं पर कोई साथ भी चाहिए था 
क्योंकि वो यात्राएं मैंने अकेले नहीं की किसी की इंतजार में
मुझे मुफ्त में बच्चों को पढ़ाना था उनके लिए घर से खाना ले जाना था
किसी को अकेला नहीं देखना था ना छोड़ना था
मैं खुद को अकेला पा कर देखती हूं
कितना कुछ करना था जो इस जीवन में छूट गया
ढलती उमर सपने छोटे करती गई 
मैं गांव और शहर से दूर बस एक कमरे की होती गई.

प्रज्ञा

I do understand!!

I look at him in pain, And lightly smile again. He might think I jest, His sorrows, wounds, unrest. I've fought battles on my own, Survi...