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I do understand!!

I look at him in pain, And lightly smile again. He might think I jest, His sorrows, wounds, unrest. I've fought battles on my own, Survived, and I have grown. I smiled not to belittle, But to say, "I understand a little." His pain, I comprehend, His wounds, I've had to mend. His hopes, dreams so grand, I've faced them, I understand. I smiled, not in jest, But to show, I've faced the test. I've lived for myself, fought the strife, In constant struggle, I've built my life. I speak the truth, I want you to see, I'm familiar with your agony. He may know me by name, I assure you, our struggles are the same. I speak the truth, no pretense, I understand your pain, hence. I'm acquainted with your story, In empathy, I share my glory.

तुम एक कविता हो !

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तुम एक कविता हो एक उदास कविता और मैं हूं एक पाठिका मैं जब जब तुम्हें पढ़ती हूं मुझे उदासियां घेर लेती है मैं उदास रहना चाहती हूं तुम्हें बार बार पढ़ना चाहती हूं तब तक, जब तक की तुम्हारी उदासियां मेरे कानों में तरन्नुम बन जाए और मैं मचल उठूं उसे गुनगुनाने को फिर एक सुंदर गीत बने  मैं उसे गाउं वो लोगों को लगे कोई उदास गीत पर सभी लोग खूब सुने सुन कर याद करके गुनगुनाए फिर मैं,तुम,और सब हमलोग एक हो जाएं तुम्हारी सी उदास कविता की तरह. प्रज्ञा ठाकुर

उसकी शादी और आख़िरी ख्वाहिश

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अपनी शादी  कुछ ठीक से याद नहीं पर शादी की खरीदारी करनी थी  नई साड़ियां, गहने, चप्पल और ढ़ेर सारा मेकअप का सामान, मुझे अचानक लहंगे की दुकान पर ख़्याल आया कि लहंगा लाल और गुलाबी नहीं लेना, मेकअप मैं लगाती नहीं,सोने के गहने का क्या करेंगे मुझे तो माता सीता जैसे वनवासी रूप की आदत है जबतक सहेलियां हज़ार दफ़े बोल कर लड़ कर मुझे ख़ुद ना तयार कर दे,शादी अगर थोड़ी सादगी वाली होती कम भीड़ पर घरवाले कहां सुनने वाले थे,मैं ही बेटा मैं हीं बेटी मैं हीं बड़े नाम वाली बहुत लोग आने वाले थे और मुझसे बात करते मुबारक बाद दुआएं और एक पल अकेला नहीं मिलने वाला था . खैर 'होईहे वोही जो राम रची राखा' तो शादी का दिन था बहुत सारे शोर और तमाशो के बाद बारात दरवाजे पर थी और मैं कमरे में सज धज कर अकेली गौरी पूजन में लीन, मां और ताई जी ने कहा कि कोई इस कमरे में नहीं आएगा दरवाजा बाहर से बंद कर रहें और कोई कितना भी आवाज़ लगाए बोलना मत , मां गौरी से मांग लो आख़िरी बार जो तुम्हें चाहिए , ऐसा कहकर मां अचानक उदास हो गई और मेरे सिर पर हाथ फेर गईं, मैं जानती थी कि मां को पता है क्या माँगूंगी, पर आज नहीं ये आख़िरी दफ़ा आख़िरी मौका म

पुरानी प्रेमिका

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कुछ भी नहीं जिया मैंने अभी कितना कुछ तो बाकी है गांव में जा कर किसी प्रेमी संग पुराने स्कूटर पर बैठना था जो बार बार बंद हो जाती हो और रोक कर उसे टेढ़ा करके फिर स्टार्ट करते हो मुझे उसके साथ किसी गांव का मेला देखना था  लेने थे मुझे उसकी पसंद की बालियां और मेरे पसंद के खट्टे बेर उसे खिलाने थे दो चोटी वाली छोटी लड़की स्कूल भेजनी थी लाल रिबन के साथ  और लड़के की शिकायत सुननी थी मुझे पड़ोस वाली भाभी से गांव से दूर देश तक ले कर जाना था उन्हें साथ दिखाना था दोनो हीं जगहों का जीवन और बारहों मास मुझे छुप छुप कर देखना था सिनेमा सारे घरवालों से और पीनी थी रोड वाली कुल्हड़ की चाय मुझे बहुत सारी यात्राओं पर कोई साथ भी चाहिए था  क्योंकि वो यात्राएं मैंने अकेले नहीं की किसी की इंतजार में मुझे मुफ्त में बच्चों को पढ़ाना था उनके लिए घर से खाना ले जाना था किसी को अकेला नहीं देखना था ना छोड़ना था मैं खुद को अकेला पा कर देखती हूं कितना कुछ करना था जो इस जीवन में छूट गया ढलती उमर सपने छोटे करती गई  मैं गांव और शहर से दूर बस एक कमरे की होती गई. प्रज्ञा

Aye zindagi !

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Aye zindgi ! Mil kabhi achanak se yun hi Ki mujhe teri kami si lag rhi Kal ki aayi khushi ko keh de thehar jane ko Aaj ki barish se keh de haule barse jara Koyal ki kuk ki kami si lag rahi aaj  Garjte badalo ne unhe rok liya hai Zara waqt mile to aana chutti lekar Bahut si baate karni hai tumse milkar Sunhre se mausam halki barish ,halka dhoop khila ho Hawaye jo tez hai wo haule haule chal rahi ho Meri pyari koyal jab kukne lagi ho Aur aasman saaf neela ho ,bina kisi kale badal ke  Tab milna aur chai ki pyali lekar  Yahi balcony me baithkar guftagu karenge Mujhe intzaar rahega tera aana jarur Bahut kuchh hai kehne ko Par adhure pan ki adat hai mere kahaniyo ko bhi Jaisi adhuri si hai zindgi meri !©

रामेश्वरम

रामेश्वरम की वो शीतल गलियां  मुझे मालूम नहीं की कब से,  मुझे उन् गलियों से प्यार हुआ  वहां की शांत सड़के, थोड़ी दूर का वो भव्य सुनहरा मंदिर, वही पास में वो शांत समुन्दर , वहीं कहीं थोड़ी दूर  एक महान मातृ भक्त की, पवित्र स्मृति स्थल  जहाँ अमर 'कलाम',  सुंदर नींद में सोये है, कितना सुकून है वहां  वहीं 'दिनकर' जी ने, अपने जीवन का आखिरी  हिसाब किताब किया था  स्वयं नारायण से, वहां बहुत पवित्रता है  मुझे उसी जगह से अगाध प्रेम है  जाने कौन सा रिश्ता है की जीवन कहीं भी बिते  आखिरी छन आखिरी श्वांस रामेश्वरम की गोद में हीं हो ! कभी-कभी प्रेम ऐसा भी होता है  जो किसी जगह की, मिट्टी और हवा से हो शायद इसी कारन बड़े-बुजुर्ग आखिरी लम्हा अपने मिट्टी में हीं गुजारना चाहते है !    प्रज्ञा #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqtales #love #life #yqhindi #pragyathakur 

Mahadev ke 'premi'

सो हमने सोचा नागपुर से दिल लगाया जाये ! <3 बेहद ख़ूबसूरत रास्तें  थें ! वह जो कभी ख़त्म ना हो और मंजिल को ना हीं ले जाये तो बेहतर, बारिश के मौसम में तो क्या गजब की हरियाली होती है, वही मिले तुम सीधे सादे से महादेव के भक्त ! समस्या ये रही की हम ठेठ हिंदी और तुम उतने ही ठेठ मराठी , और अंग्रेजी तो गजब की तंग की ना बोले तो ही ठीक है. पर जो एक बात दोनों में कॉमन थी हमारी इस्माइली -जी हाँ दोनों मुस्कुराये गजब थे, एकदूसरे पे नज़र पड़ते हीं. वो क्या है ना तुम छुप-छुप कर देखते रहे बस स्टैंड पे खड़े मेरी बस की तरफ और जब बस की खिड़की से हमने देखा तुम शरमा गए ! वो अंदाज़ भी क्या खूब होता है जनाब जब कोई लड़का शरमा जाये, लड़की के शर्माने की अदा से बड़ी क़यामत है, हमने तो मन पढ़ लिया लड़का गजब का शरीफ था ! बस फिर बस रुकी हम उतरे तुम धीरे से पास आये चल कर और कहा "कुठे जायच आहे ? और मैं दोबारा मुस्कुरा दी 'ये नहीं कहना चाहती थी की मुझे मराठी नहीं आती क्यूंकि नहीं आती तो क्या हुआ  मुझे तुम समझ आते हो. तुमने फिर पूछा टूटी हिंदी जबान 'मराठी ...हिंदी ' ? मैंने हिंदी कहा ! बस चल दी ...दोनों मुस्कुराय